Fisheries? Profitable business, complete information and benefits

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(Fisheries)मछली पालन कैसे करें? मछली पालन व्यवसाय की सम्पूर्ण जानकारी और लाभ

(Fisheries)श्री नरेंद्र सिंह तोमर लगातार किसानों की आय को बढ़ाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए नरेंद्र कृषि के साथ साथ कुछ छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने में लगी है। ताकि किसान भाई खेती के साथ साथ अन्य स्रोतों से अपनी जीवन-यापन आसानी से चला सके और कमाई भी कर सके इन्ही छोटे उद्योगों बढ़ावा देने के लिए २०२३ से सरकार की तरफ से सब्सिडी भी दी जाती है। जिससे गरीब किसान भाइयों को इनको लगाने में प्रॉफिट प्राप्त होती है।

इन्ही लाभकारी उद्योगों में शामिल मछली पालन का उद्योग है। जो वर्तमान में किसान भाइयों के बीच काफी फेमस होता जा रहा हैं। इसकी आपार संभावनाओं को देखते हुए किसान भाइयों का झुकाव इसकी तरफ अधिक होने लगा है।आज इस खेती के बारे में आज हम आपको सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं।

(Fisheries)मछली पालन क्यों करें?

वर्तमान समय में मछली की मांग बाजार में काफी ज्यादा है। जिसको देखते हुए इनको बेचने में भी अधिक दिक़्क़तों का सामना नही करना पड़ता इसके अलावा मछली पालन उद्योग की शुरुआत करने में कम पूंजी की जरुरत ही होती है। यह उद्योग कम बजट में अधिक उत्पादन देने वाला है। इसकी शुरुआत छोटे और बड़े दोनों पैमाने पर की जा सकती है। इसके लिए सरकार की तरफ से भी मदद प्रदान की जाती है। इस उद्योग से प्राप्त होने वाला लाभ इसमें होने वाले खर्च से लगभग 6 से 11 गुना अधिक प्राप्त होता हैं। जिससे किसान भाई की अच्छी खासी बेनिफिट हो जाती है।

(Fisheries)मछली पालन के तरीके

मछली पालन कई तरह से किया जा सकता है, लेकिन मुख्य रूप से इसे तीन तरीकों से ही किया जाता है।

सामान्य विधि (जाल विधि)

(Fisheries)सामान्य विधि से मछली का पालन पूरी तरह फ्री में किया जाता है। इसमें सिर्फ मेहनत की आवश्यकता होती हैं। इस विधि से मछली का पालन नहर, नदी, बांध और समुद्र में किया भी जाता है। इसमें प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली मछलियों को पकड़कर बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है। जिसे सिर्क छोटे पैमाने पर ही कर सकते हैं। इस विधि से मछली पालन सिर्फ नदी, नहर याबड़े नदियों भागों में ही किया जा सकता है। इसको करने में काफी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है।

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(Fisheries)घर पर मछली पालन

(Fisheries)घर पर मछली पालन के लिए कम भूमि की जरूरत होती है। इस विधि से मछली पालन छोटे पैमाने पर उन जगहों पर किया जाता है, जहां पास में कोई प्राकृतिक या उचित स्थान ही होता। इस विधि में मछली पालन घर पर प्लास्टिक टैंक लगाकर या घर पर जमीन में एक माध्यम साइज का तालाब बनाकर उसमें इसका व्यापार शुरू किया जाता है। जिसे खुद एक व्यक्ति आसानी से चला सकता है।

इसको शुरू करने में लगभग 31 से 41 हजार का खर्च आता है। जबकि उत्पादन से प्राप्त होने वाला लाभ काफी अच्छा होता है। इस विधि से किसान भाई 10 हजार के आसपास मछली पालना कर 20 लाख तक की कमाई कर सकता है।

कृत्रिम रूप से बड़े तालाब बनाकर

(Fisheries)कृत्रिम रूप से तालाब बनवाकर इसका बड़ा व्यवसाय किया जाता है। बड़े पैमाने पर इसको शुरू करने के तरीके को सबसे अच्छा माना जाता है। क्योंकि इस तरीके से इसका व्यावसाय करने पर ज्यादा खर्च नहीं होने से बार बार अधिक उत्पादन प्राप्त हो जाता है। इस तरीके से व्यवसाय करने में शुरुआत में रखरखाव की चीजों पर 2 बार ही खर्च किया जाता हैं उसके बाद इससे लगातार लाभ ही कमाया जाता है। और इस तरीके से मछलियों की देखभाल सही तरीके से की जा सकती है। जिससे मछलियों में क्षति भी काफी कम देखने को मिलता है।

(Fisheries)वर्तमान में इन के अलावा एक और नयी तकनिकी आ गई है, जिसे बाईफ्लोक के नाम से जाना जाता है, जो कुछ हद तक कृत्रिम रूप से ही की जाती हैं, जिसमें मछली को तैयार करने में और भी कम लागत होता है, और प्राप्त होने वाले उत्पादन से बेनिफिट अधिक मिलता है।

(Fisheries)वातावरण के आधार पर

(Fisheries)मछलियों के विकास में वातावरण का काफी अहम योगदान मन जाता है। अलग अलग वातावरण में अलग अलग तरह की मछली का उत्पादन किया जाता है। मछली उत्पादन में वातावरण की बात करें तो उत्तर भारत के बिहार में मछली की कतला, राहू, मिर्गल और कामन कार्प जैसी किस्मों का पालन आसानी से किया जा सकता है। वहीं बात करें उष्ण प्रदेशो के लिए तो इसके लिए कामन कार्प सबसे उत्तम प्रजाति मानी जाती है।

(Fisheries)मछली के बाजार भाव के आधार पर

वातावरण के आधार पर चयन करने के बाद इसके मार्किट भाव का बारी आता है। जो मछली पालन का प्रमुख उद्देश्य होता है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति अगर इसका धंधा करता है, तो सबसे पहले अधिक मुनाफा लेने के बारें में सोचता है। इस कारण हमेशा बाजार में अधिक महंगी बिकने वाली और कम खर्च में तैयार होने वाली मछली का चुनाव करना चाहिए।

(Fisheries)प्रजाति के आधार पर

प्रजाति के आधार पर मछली का चयन करने के दौरान इसकी सबसे अच्छे और टिकाव प्रजातियों का ही चयन करना चाहिए। वैसे तो मछली की बहुत सारी प्रजाति पायी जाती हैं। लेकिन मछली की खाने योग्य कुछ प्रजाति हैं जिन्हें भारतीय लोग सबसे ज्यादा पसंद करते है।

(Fisheries)पसंद किये जाने वाली देशी प्रजाति:-

कतला

(Fisheries)कतला मछली सबसे तेजी से विकास करने वाली मछली है। जिसका पालन उत्तर भारत में अधिक किया जाता है। यह अपने भोजन के रूप में सूक्ष्म शैवाल, कीड़ों के लार्वा, जलीय घास पात और सड़ी गली वनस्पति को खाती है। जिससे इसके पालन में खर्च कम आता है। जबकि बाजार में इसका भाव काफी अधिक मिलता है। यह एक साल में ही डेढ़ किलो से ज्यादा वजन की हो जाती है। इसका वजन अधिकतम 55 किलो तक पाया जा सकता है।

(Fisheries)राहू

(Fisheries)इस प्रजाति की मछली भी काफी जल्दी बड़ी और मोटी हो जाती हैं। ये मछली अपने भोजन के रूप में मुख्य रूप से पानी में जमने वाली खाई को खाते हैं। इसके अलावा ये पानी के पौधों की सड़ी हुई पत्तियों और अन्य घास पात को खाती हैं। जिससे किसानो को इसके भोजन के खर्चे बच जाते है। इसके जीव एक 8 महीने में ही एक फिट से अधिक लम्बाई के हो जाते हैं। जिनका वजन डेढ़ किलो से ज्यादा होता है। इसका बाजार भाव अधिक मिलता है।

(Fisheries)मिर्गल

इन दोनों मछली के बाद, ये काफी तेजी से बढ़ने वाली मछली हैं। जो एक साल में 900 ग्राम के आसपास भर वाली हो जाती है। इसके प्रजाति चलते पानी में अपने अंडे छोड़ते हैं। भोजन के रूप में इस प्रजाति की मछली सड़ी गली पत्तियों और गंदे मलबे को खाती है। जिससे इसके भोजन कम खर्च में निपट जाती है।

(Fisheries)विदेशी प्रजाति:-

कॉमन कार्प

(Fisheries)कॉमन कार्प मछली एक विदेशी प्रजाति है। जो समशीतोष्ण प्रदेश की मछली होने के बाद भी निम्न तापमान वाली जगहों में आसानी से विकास कर लेती है। मछली की इस प्रजाति के जीव सर्वभक्षी होते हैं जो आसानी से कृत्रिम खाने को भी खा लेते हैं। इस प्रजाति के मछली दो साल में एक से डेढ़ और दो किलो तक का वजन बना लेते हैं। ये प्रजाति पानी में कम ऑक्सीजन और अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड की सांद्रता को अन्य मछलियों से ज्यादा झेल सकते है। क्यूंकि ये मछली समुद्री मछली के रूप में जानी जाती है।

(Fisheries)ग्रास कार्प

(Fisheries)ग्रास कार्प भी मछली अपने भोजन के रूप में मुख्य रूप से पानी में पाए जाने वाले घास को खाती है। इसके अलावा यह स्थलीय वनस्पतियां, अनाज, आलू, चावल की भूसी, सब्जियों के सरे पत्ते और उनके सरे-गले तने को भी खाती है। अगर टैंक या तालाब के पानी में जलीय पौधे कम हो तो मछली का विकास रुक जाता है। इस प्रजाति की मछली 13 महीने में ही दो से ढाई किलो से ज्यादा वजन बना लेती है। जो बहुत अधिक मात्रा में भोजन खाती है।

(Fisheries)सिल्वर कार्प

(Fisheries)मछली की यह समुंद्री प्रजाति सबसे तेजी से विकास करने वाली है। इसके जीव 12 महिने में ही साढ़े तीन किलो के आसपास वजन वाले बन जाते हैं। इसके जीव भोजन के रूप में वनस्पति लवक को खाते हैं। इसके जीवों को ऑक्सीजन की जरूरत ज्यादा होती है। पानी में ऑक्सीजन की कमी होने से इसके जीव बहुत जल्द ख़त्म हो जाते हैं। इसलिए इन्हें बहुत निगरानी में रलखा जाता है।

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