जीरा की खेती की सम्पूर्ण जनकारी:
जीरा की खेती-जीरा (Cumin) एक मसाला और औषधीय पौधा है जो खाद्य और चिकित्सा में व्यापक रूप से उपयोग होता है। जीरा की खेती अच्छे ताजगी वाले भूमियों में की जा सकती है और यह ताजगी को बनाए रखने के लिए अच्छी धारा, नियमित जल सींचाई, और सुरक्षा की आवश्यकता होती है। यहां जीरा की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी है।
जीरा की खेती के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी का है। इससे पौधों को अच्छी ग्रोथ मिलती है और यह उन्हें ठंडक भी प्रदान करता है। सुडाउनी क्षेत्रों में बीजों का चयन किस्मों का होना चाहिए जो उस इलाके की जलवायु और भूमि से मेल खाती हो। बीजों का चयन अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों को चुनकर किया जाना चाहिए।
जीरा पौधों को अच्छी ग्रोथ के लिए नियमित और सावधानी से जल सींचाई की आवश्यकता होती है। बूंदी जल सींचाई करना बढ़िया होता है। जीरा की खेती के लिए अच्छे उर्वरकों का चयन करें और खाद स्तर की जाँच नियमित रूप से करते रहें।
जीरा के पौधों को रोग और कीटों से बचाने के लिए नियमित रूप से उनकी सुरक्षा करें। उचित प्रबंधन उपायों का अनुसरण करें। पौधों की वृद्धि को बनाए रखने के लिए नियमित अंशकलन और थिनिंग का पालन करें।
जीरा की खेती-जीरा की कटाई का समय मार्च-अप्रैल होता है। यह समय उचित होता है क्योंकि इस समय पौधे पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं और बीज पूरी तरह से पूर्ण हो जाते हैं।
जीरा की कटाई के बाद, उसे अच्छे से सुखा लें और उसे उचित भंडारण स्थान पर रखें। फिर, उसे बाजार में पहुँचाने के लिए उचित तरीके से पैक करें।
इसमें स्थानीय परिस्थितियों, जलवायु के अनुसार, और स्थानीय कृषि विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर थोड़ी सी बदल सकती है।
जीरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान:
जीरा की खेती-जीरे की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, तथा भूमि का P.H. मान भी सामान्य होना चाहिए | जीरे की फसल रबी की फसल के साथ की जाती है, इसलिए इसके पौधे सर्द जलवायु में अच्छे से वृद्धि करते है | इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है, तथा अधिक गर्म जलवायु इसके पौधों के लिए उपयुक्त नहीं होती है |
जीरे के पौधों को रोपाई के पश्चात् 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा पौधों की वृद्धि के समय 20 डिग्री तापमान उचित होता है | इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकते है |
जीरे की उन्नत किस्में:
जीरा की खेती-जीरे की उन्नत किस्मों का चयन कृषि उत्पादन में उन्नति और बेहतर प्रदर्शन के लिए किया जाता है। ये किस्में सामान्यत: उच्च उत्पादकता, सुगंध, और रोग प्रतिरोधी होती हैं।
नीचे कुछ जीरे की उन्नत किस्में हैं:
Pusa Jeera 1:
जीरा की खेती-यह एक उन्नत जीरा की किस्म है जो भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित की गई है। इसकी खास बात यह है कि इसमें उच्च ताजगी और उत्कृष्ट रुप से विकसित बीज हैं।
RZ 209:
यह जीरे की एक और उन्नत किस्म है जो उच्च उत्पादकता और सुगंध से जानी जाती है। इसमें अच्छे रुप से विकसित बीज होते हैं जो कि अधिक प्रमुख तत्वों की गुणवत्ता के साथ होते हैं।
Vikram Jeera 101:
इस जीरे की किस्म को उच्च उत्पादकता और शत्रुता के प्रति उच्च प्रतिरोध के लिए जाना जाता है। इसमें सुगंध और स्वाद की अच्छी गुणवत्ता है।
Pant Jeera 329:
यह किस्म उत्तर भारतीय क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से विकसित की गई है और इसमें अच्छे रुप से विकसित बीज होते हैं।
MR 1401:
इस किस्म को मध्य प्रदेश राज्य के उत्तरी भाग के लिए विकसित किया गया है और इसमें अच्छे रुप से विकसित बीज होते हैं।
JC 330:
यह किस्म उत्तर भारत के क्षेत्रों के लिए उन्नत बीजों के लिए जानी जाती है और इसमें सुगंध और रुचिकर बीज होते हैं।
जीरे की उन्नत किस्में कृषकों को अधिक उत्पादकता, बेहतर गुणवत्ता और सुरक्षा प्रदान करने में मदद कर सकती हैं। इन्हें स्थानीय कृषि अनुसंधान संस्थानों या कृषि विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर चुनना चाहिए।
जीरे के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका:
जीरा की खेती-जीरे के बीजो की रोपाई बीज के रूप में की जाती है| इसके लिए छिड़काव और ड्रिल तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है | ड्रिल विधि द्वारा रोपाई करने के लिए एक एकड़ के खेत में 8 से 10 KG बीजो की आवश्यकता होती है | वही छिड़काव विधि द्वारा बीजो की रोपाई के लिए एक एकड़ के खेत में 12 KG बीज की आवश्यकता होती है |
बीजो को खेत में लगाने से पूर्व उन्हें कार्बनडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | छिड़काव विधि के माध्यम से रोपाई के लिए खेत में 5 फ़ीट की दूरी रखते हुए क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है | जीरा की खेती-इन क्यारियों में बीजो का छिड़काव कर उन्हें हाथ या दंताली से दबा दिया जाता है| इससे बीज एक से डेढ़ CM नीचे दब जाता है |
इसके अलावा यदि आप ड्रिल विधि द्वारा बीजो की रोपाई करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खेत में पंक्तियो को तैयार कर लेना होता है, तथा प्रत्येक पंक्ति के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है | पंक्तियों में बीजो की रोपाई 10 से 15 CM की दूरी पर की जाती है | चूंकि जीरे की फसल रबी की फसल के साथ लगाई जाती है, इसलिए इसके बीजो को नवंबर माह के अंत तक लगाना उचित होता है |
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जीरे के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम:
जीरा की खेती-जीरे के पौधों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं जो पौधों की ग्रोथ और उत्पादकता को प्रभावित कर सकते हैं। यहां कुछ मुख्य जीरे के पौधों में लगने वाले रोगों और उनकी रोकथाम के उपाय दिए जा रहे हैं:
डंडली सर्कल रोट (Damping-off):
जीरा की खेती-लक्षण: नाबाते या नौबते में स्थानीय गतिविधियों की कमी, पानी की भरपूरता या जलवायु से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
रोकथाम: बुआई से पहले बीजों को बारीक पाउडर में खिचकर उपयुक्त उपायों से उचित वेब्साइट और उर्वरकों का उपयोग करें।
ब्लैक लेग (Black Leg):
लक्षण: पौधों की बेजबूटी और कच्चे हिस्सों में काले रंग की लकड़ीदार प्रदर्शन की समस्या होती है।
रोकथाम: स्थानांतरण, पूर्ण खेती तंत्र, और रोगजनक भूमि को छोड़ने की परंपरा को बदलने से इस रोग का प्रतिरोध किया जा सकता है।
रूट रोट (Root Rot):
लक्षण: पौधों के जड़ों के काले होने, गीले होने और मरने के संकेत हो सकते हैं।
रोकथाम: सुरक्षित बुआई, स्थिर निरीक्षण और जल सींचाई की सही प्रबंधन प्रक्रियाएं इस रोग से बचाव कर सकती हैं।
अल्टरनेरिया ब्लाइट (Alternaria Blight):
लक्षण: पत्तियों पर सीधे सफेद रंग के छायांक दिखाई देने वाले छायें, पत्तियों की सुखावट, और बूटे के विकास के दौरान देखा जा सकता है।
रोकथाम: अच्छी वायरास रोग संकेतों की पहचान, पौधों को सही ताजगी के साथ सींचाई करना, और फफुंदीन के जैसे फफुंदीन विषेशज्ञों का प्रयोग करना।
रूट कोरोज़न (Root Knot Nematode):
लक्षण: पौधों की जड़ें और बूटे कच्ची हो जाती हैं और रूट की स्वेलिंग होती है।
रोकथाम: पूर्ण बुआई, नियमित विचार और बुआई से पहले उचित पौधों का चयन करना इस समस्या से बचाव कर सकता है।
जीरे के पौधों की कटाई, पैदावार, लाभ और भाव:
जीरा की खेती-जीरे की उन्नत किस्में बीज रोपाई के तक़रीबन 100 से 120 दिन पश्चात् पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है | जब इसके पौधों में लगे बीजो का रंग हल्का भूरा दिखाई देने लगे उस दौरान पुष्प छत्रक को काटकर एकत्रित कर खेत में ही सूखा लिया जाता है | इसके बाद सूखे हुए पुष्प छत्रक से मशीन द्वारा दानो को निकल लिया जाता है | उन्नत किस्मो के आधार पर जीरे के एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 7 से 8 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है |
जीरा का बाज़ारी भाव 200 रूपए प्रति किलो तक होता है, जिस हिसाब से किसान भाई जीरे की एक बार की फसल से 40 से 50 हज़ार तक की कमाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है |