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कैसे होती है आंवला की खेती? (How is Gooseberry cultivation done?)

Cultivation of Gooseberry आँवले को युफ़ोरबिएसी परिवार का पेड़ कहा जाता है, यह भारत का एक महत्वपूर्ण फल वाला पेड़ है | प्राचीन कल से ही इस फल को बहुत ही गुणकारी माना जाता है | आँवले का इस्तेमाल भारतीय पकमान बनाकर खाने में किया जाता है। इंडियन डिस मुरब्बा, आचार, जैम, सब्जी और जैली जैसी डिस बनाकर तैयार किया जाता है | आँवले को एक आयुर्वेदिक औषधीय फल के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है | इसलिए इसे खाने के अलावा औषधीय, शक्तिवर्धक तथा सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में उपयोग में लाया जाता है |

Cultivation of Gooseberry इसके अंदर उपस्थित पोषक तत्व मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होते है | आँवले का पौधा एक बार तैयार हो जाने पर कई वर्षो तक फल देता है | इसका पेड़ देखने में सीधा और झरिये आकार का होता है | आँवले की खेती से अधिक लाभ कमाया जाता है | आज हम आपको आंवले की खेती के बारे में और करने के तरीके के बारे में बताएँगे।

Cultivation of Gooseberryसबसे पहले आँवले की खेती करने के लिए ,आपको आँवले की खेती से जुड़ी जानकारी जैसे, आँवले की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु, तापमान, खेत की तैयारी के बारे में जानकारी लेना जरुरी है।

आँवले की खेती को करने के लिए ठोस मिट्टी की आवश्यकता होती है, तथा खेत में जल भराव स्थिति न पैदा होनी चाहिए, क्योकि जल-भराव से पौधों में सरन होने का खतरा बढ़ जाता है | आँवले की खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 8 के मध्य होना चाहिए | इसके अतिरिक्त क्षारीय भूमि में भी इसके पेड़ों को लगा सकते है|

Cultivation of Gooseberry समशीतोष्ण जलवायु को आँवले की खेती के लिए बेहतर माना जाता है | इसके पौधे अधिक गर्मी वाले तापमान में सरलता से विकास करते है, तथा बरसत के मौसम में ही इसके पौधों पर फल बनने लगते है | सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इसके पौधों के लिए अत्यंत हानिकारक होता ,है किन्तु कम ठण्ड में पौधे अच्छे से विकास करते है | पौधों के विकास के समय इन्हे सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, इसके अलावा आँवले के पौधों के लिए अधिक समय तक न्यूनतम तापमान लाभकारी नहीं होता है | समुद्रतल से तक़रीबन 1806 मीटर की ऊंचाई पर इसकी खेती को करना चाहिए |

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फ्रान्सिस किस्म का पौधा Cultivation of Gooseberry

Cultivation of Gooseberry इस किस्म के पौधों में फलो को तैयार होने में अधिक समय लगता है | इसका वृक्ष नीचे को और झुका हुआ होता है, जिस वजह से इसे हाथी झूल भी कहते है | आँवले की इस किस्म में पौधों के फलो में 7-9 कलिया पाई जाती है | इस किस्म के फलो का उपयोग आचार तैयार करने में किया जाता है| इसके फल नवम्बर के माह में तैयार हो जाते है, तथा पके हुए फल देखने में पीले रंग के होते है| इस किस्म के पौधों से निकलने वाले फलो अधिक समय तक जमा करके नहीं रखा जा सकता है।

एन ए-4 किस्म का पौधा Cultivation of Gooseberry

इस किस्म के पौधों पर मादा फूलों की संख्या अधिक होती है, तथा इसके फल अक्टूबर माह के मध्य में पकना शुरू कर देते है | आँवले की इस किस्म के फल देखने में सामान्य आकार के गोल तथा हरे होते है, यह अधिक बड़ा फल होता है | जिस कारण इसका एक पौधा औसतन 112 किलो की पैदावार देता है|

कृष्णा किस्म का पौधा Cultivation of Gooseberry

इस किस्म के पौधे कम समय में पैदावार देने लगते है, यह अधिक गूदेदार फल देता है| इसका एक पौधा लगभग 122 किलो की पैदावार देता है| इस किस्म के पौधे नवबर माह के शुरू में तैयार हो जाते है, तथा इसके फल देखने में हल्की लालिमा के साथ पीले रंग के होते है|

चकईया किस्म के पौधे Cultivation of Gooseberry

Cultivation of Gooseberry इस किस्म के पौधे अधिक चौड़े होते है, तथा पौधे की प्रत्येक शाखा पर मादा फूलों को पाया जाता है | आँवले की इस किस्म का भंडारण अधिक समय तक नहीं कर सकते है | इस किस्म के फलो में अधिक रस वाला बड़ा होता है, जिस वजह से इसका इस्तेमाल आचार और मुरब्बे को तैयार करने में किया जाता है |

एन.ए. 9 किस्म के पौधे Cultivation of Gooseberry

इस किस्म के पौधों के फल मात्र 2 महीने में पककर तैयार हो जाते है | नवंबर माह में इसके पौधे फल देने लगते है | आँवले की इस किस्म में फल आकार में बड़ा तथा छिलका पतला व मुलायम होता है, जिसका इस्तेमाल जैम, जैली और कैंडी को बनाने में करते है | इसका एक पौधा औसतन 116 किलो की पैदावार देता है|

बनारसी किस्म के पौधे Cultivation of गूसबेरॉय

Cultivation of Gooseberry आँवले की यह किस्म सबसे पुरानी और जल्दी तैयार होने वाली पेड़ है | इसका पेड़ भी बड़ा होता है तथा इसके फल देखने में अंडाकार आकार और पकने पर हल्के पीले रंग के होते है | इसका एक पौधा वर्ष में 81 किलो की पैदावार देता है |

नरेन्द्र- 10 किस्म के पौधे Cultivation of Gooseberry

आँवले की इस किस्म में फल बड़े तथा रेशे युक्त होते है | इसके फलो को हाथ में पकड़ने पर खुरदरे महसूस होते है | इसमें निकलने वाला गूदा हरा तथा सफ़ेद रंग का होता है | इसका एक पौधा 102 किलो की पैदावार देता है |

आँवले के खेत को कैसे तैयार करे (Gooseberry Farm Prepare)

Cultivation of Gooseberry चूंकि आंवले का एक पौधा 7 वर्षो तक पैदावार देता है | इसके लिए इसके खेत को अच्छे से जुताई कर तैयार करना चाहिए | इसके लिए सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई करनी चाहिए,ताकि पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाये और खाद बन जाये | जुताई के बाद खेत को 8-10 दिनों के लिए खुला छोड़ दे जिससे सूर्य की धूप भूमि में अच्छी तरह से लग जाये |

Cultivation of Gooseberry इसके बाद खेत में रोटावेटर को चलवाकर फिर से अच्छी तरह से जुतवा दे | मिट्टी के हल्के और भुरभुरा हो जाने पर पाटा लगवा कर खेत को समतल बना ले | इसके बाद खेत में पांच मीटर की दूरी रखते हुए दो फ़ीट चौड़े तथा डेढ़ फिट गहरे गढ्ढे को तैयार कर ले तथा 13 से 16 फ़ीट की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर ले | इसके बाद जैविक और रासायनिक उवर्रको को मिट्टी में मिलाकर गड्डो में भर दे | इस गड्डो को पौध रोपाई से 25 दिन पहले तैयार कर लेना चाहिए |

आँवले के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका (The Right Time and Way of Planting Amla Seedlings)

Cultivation of Gooseberry आँवले के पौधों को खेत में लगाने के एक 35 दिन पहले नर्सरी में तैयार कर लिया जाता है | इसके बाद पौधों को तैयार किये गए गड्डो के बीच में एक छोटा सा गड्डा तैयार कर देना चाहिए | इसके बाद पौधों को मिट्टी से अच्छी तरह से हटा दे | आँवले के पौधों को सितम्बर माह में लगाना उपयुक्त माना जाता है, इस समय लगाए गए पौधे अच्छे से वृद्धि करते है |

आँवले के पौधों की सिंचाई का तरीका (Gooseberry Plants Irrigation Methods)

Cultivation of Gooseberry ऑंवला के पौधों को खेत लगाने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए | इसके बाद गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार तथा सर्दियों के मौसम में 16 से 22 दिन में सिंचाई करनी चाहिए | बारिश का मौसम होने पर जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई नहीं करनी चाहिए | जब पेड़ पर फूल खिलने लगे तब सिंचाई रोक देनी चाहिए |

आँवले के पौधों में उर्वरक की मात्रा (Amla Plants Fertilizer Amount)

Cultivation of Gooseberry आँवले के पौधों की अच्छी पैदावार के लिए उचित खाद्य की जरूरत होती है | इसके लिए गड्डो को तैयार करते वक़्त 32 किलो पुरानी गोबर की खाद, 52 ग्राम यूरिया तथा 71 ग्राम डी,ए.पी. और 51 ग्राम एम.ओ.पी. की मात्रा को मिट्टी में मिलाकर अच्छे से गड्डो को भर देना चाहिए | Cultivation of Gooseberryइसके बाद जब पौधे विकास करने लगे तब 41 किलो गोबर की खाद, 2 kg नीम की खली, 103 gm यूरिया, 121 gm डी.ए.पी. तथा 103 gm एम.ओ.पी. की मात्रा को पौधों के पास में छोटा सा गड्डा बना कर भर दे | इस प्रक्रिया के बाद गड्डो की सिंचाई कर देनी चाहिए |

आँवले के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Amla Plants)

Cultivation of Gooseberry आँवले के पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए खरपतवार पर नियंत्रण करना आवश्यक होता है। आँवले के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए नीलाई-गुड़ाई विधि का इस्तेमाल करना चाहिए | Cultivation of गूसबेरॉय इसके लिए आँवले के पौधों को रोपाई के 17 से 21 दिनों के पश्चात् पहली नीलाई-गुड़ाई कर देनी चाहिए | इसके पौधों को अच्छे से वृद्धि करने के लिए 8 से 10 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है | इसके बाद समय-समय पर जब आपको खेत में खरपतवार निराई करते रहना चाहिए |

कुंगी रोग

Cultivation of Gooseberry इस किस्म के रोग के लग जाने से पौधों की पत्तियाँ और फलो के ऊपर काले रंग के घब्बे दिखाई देने लगते है | यह कुंजी रोग धीरे-धीरे पूरे पेड़ पर आक्रमण कर देता है | इस रोग के लग जाने से फल बर्बाद होने लगते है | इंडोफिल एम-45 का उचित मात्रा में छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

काला धब्बा रोग

Cultivation of Gooseberry यह काला धब्बा रोग पौधों में बोरोन की कमी से देखने को मिलता है | इस रोग के संक्रमण से फलो पर स्याही और काले धब्बे पड़ने लगते है | यदि इस रोग की रोकथाम न की जाये तो पैदावार और गुणवत्ता दोनों ही खत्म हो सकती है | बोरेक्स का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम किया जा सकता है |

गुठली भेदक

Cultivation of Gooseberry इस किस्म का कीट रोग आँवले के पौधों को अधिक नष्ट करता है, यह पौधों में लगने वाले फलो को बर्बाद कर देता है, जिससे फल टूटकर नीचे गिर जाते है, यह छेदक रोग भी कहते है | इस कीट का लार्वा इतना शक्तिशाली होता है, कि फलों में छेद करते हुए गुठली तक आक्रमण करता है | कार्बारिल या मोनोक्रोटोफॉस का उचित मात्रा में छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

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