Chaulai ki kheti, Methods, Improved Varieties, Profit & Loss

Chaulai ki kheti, Methods, Improved Varieties, Profit & Loss

 

(Chaulai ki kheti)चौलाई की खेती (Amaranth Farming)

(Chaulai ki kheti) चौलाई की खेती पत्ता, वेजिटेबल के रूप में की जाती है | किसान भाई इसे नगदी फसल के लिए उगाते है | भारत के अलावा चौलाई की खेती दक्षिणी पूर्वी एशिया, पूर्वी अफ्रीका, मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका और पश्चिम अफ्रीका देशो में अधिकतम मात्रा में करते है | भरत में चौलाई को मुख्यतः दो नामों से जानते है, रामदाना और राजगिरि | इसका पौधा दो से तीन मीटर ऊँचा होता है, जिसमे निकलने वाले दानो को सब्जी बनाने के लिए प्रयोग में लाते है |

(Chaulai ki kheti) इन पौधों पर गुलाबी और पर्पल रंग के फूल निकलते है | यह एक ऐसा पौधा है, जिसमे कुछ मात्रा में गोल्ड घातु पाया जाता है, जिस वजह से इसे आयुर्वेदिक औषधियों को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है | चौलाई पौधे का तना, जड़, पत्ती, डंठल लगभग सभी भागो को प्रयोग में लाते है | इसमें खनिज,प्रोटीन, विटामिन ए और सी, अधिक मात्रा में पाया जाता है | पेट संबंधित बीमारियों से राहत पाने के लिए भी चौलाई का इस्तेमाल किया जाता है |

(Chaulai ki kheti) चौलाई की खेती भारत में लगभग सभी स्थानों पर किया जा सकता है | किसान चाचा चौलाई की खेती कर अच्छी मुनाफा भी करते है | यदि आप चौलाई की खेती कर लाभ कमाने के बारे में सोच रहे है तो आज इस लेख के माध्यम से हम आपको इसके खेती के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करेंगे।

Chaulai ki kheti, Methods, Improved Varieties, Profit & Loss

(Chaulai ki kheti) चौलाई की खेती कैसे करें (Amaranth Farming in Hindi)

(Chaulai ki kheti) यहाँ किसान भाइयों को चौलाई की खेती में उपयुक्त मिट्टी, जलवायु तथा तापमान (Amaranth Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature) के बारे में जानकारी दी गई है, जिससे किसान बढ़िया उपज करके लाभ कमा सकते है, जिसकी जानकारी इस प्रकार दिया गया है:-

(Chaulai ki kheti) चौलाई की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में आसानी से की जा सकती है | किन्तु कार्बनिक पदार्थो से युक्त मिट्टी में इसकी खेती कर अच्छी पैदावार प्राप्त कर लाभ कमा सकते है | इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की जरुरत होती है, तथा जल भराव वाली भूमि में इसे बिलकुल न उगाये | चौलाई की खेती में भूमि का P.H. मान 8-9 तक होना चाहिए |

(Chaulai ki kheti) इसका पौधा शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु वाला होता है | ग्रीष्म ऋतू के मौसम में चौलाई के पौधे अच्छे से विकसित होते है, तथा सर्दियों के मौसम, इसकी खेती के लिए अच्छा नहीं होता है | सामान्य बारिश में भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है, किन्तु खेत में जल भराव का विशेष ध्यान रखे | जल भराव होने पर पौधों में कई तरह के रोग लग जाते है |

(Chaulai ki kheti) इसके पौधों को आरम्भ में अंकुरित होने के लिए 21 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा पौध अनुकरण के पश्चात् पौध विकास के समय 31 डिग्री तापमान की जरूरत होती है| चौलाई के पौधे न्यूनतम 17 डिग्री और अधिकतम 41 डिग्री तापमान पर भी ठीक से विकास कर सकते है |

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(Chaulai ki kheti) चौलाई की उन्नत किस्में (Amaranth Improved Varieties)

कपिलासा:- (Chaulai ki kheti) यह चौलाई की एक खास किस्म है, जिसे उत्पादन देने में 31 से 40 दिन का समय लग जाता है | इस क़िस्म के पौधों की लम्बाई ढाई मीटर तक पायी जाती है | चौलाई की यह क़िस्म अल्प समय में सामान्य पैदावार देने के लिए जानी जाती है, जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन तक़रीबन 14 क्विंटल होता है |

आर एम ए 4:- (Chaulai ki kheti) चौलाई की यह क़िस्म कृषि अनुसंधान केंद्र, मंडोर के माध्यम से रेडी की गयी है | जिसमे निकलने वाला पौधा एक से दो मीटर लम्बा होता है | इसके पौधे बीज रोपाई के तक़रीबन 121 से 132 दिन बाद उत्पादन देना आरम्भ कर देते है, किन्तु इसकी हरी पत्तियों को 31 से 42 दिन बाद काटा जा सकता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 13 से 17 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

छोटी चौलाई:-(Chaulai ki kheti)  नई दिल्ली की भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा इस क़िस्म को तैयार किया गया है | इसमें पौधों की लम्बाई सामान्य से हल्का कम पायी जाती है, तथा पत्तियां भी पतले आकार की होती है | इस क़िस्म को बारिश के मौसम में उगाना उचित माना जाता है |

बड़ी चौलाई:– इस क़िस्म को नई दिल्ली की भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के माध्यम से रेडी किया गया है | जिसमे निकलने वाले पौधा तीन मीटर तक लम्बा होता है, तथा पौधे का तना भी बड़े आकार का होता है, और पत्तियां भी मोती होती है | यह क़िस्म गर्मियों के मौसम में अधिक पैदावार देने के लिए उपजाई जाती है |

अन्नपूर्णा:- (Chaulai ki kheti) इस क़िस्म के पौधे बीज रोपाई के 121 से 132 दिन पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देते है, तथा पत्तियों की कटाई 31 से 35 दिन बाद की जा सकती है | इसके पौधे तीन मीटर तक लम्बे होता है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 19 क्विंटल का उत्पादन दे देते है |

सुवर्णा:- चौलाई की यह क़िस्म उत्तर भारत में अधिक पैदावार देने के लिए उगाई जाती है | इस क़िस्म में पौधों को पककर तैयार होने में 81से 90 दिन का समय लग जाता है | जिसमे हरी फसल की कटाई बीज रोपाई के 31 दिन पश्चात् की जा सकती है | इस क़िस्म के पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 14 से 21 क्विंटल का उत्पादन दे देते है |

पूसा लाल:- (Chaulai ki kheti) इस क़िस्म के पौधे हरी फसल की कटाई के लिए 31 दिन बाद तैयार हो जाते है, तथा फसल को पककर तैयार होने में 92 दिन का समय लग जाता है | यह क़िस्म वर्षाऋतु और गर्मियों के मौसम में ज्यादा पैदावार देने के लिए उगाई जाती है| जिसमे निकलने वाला पौधा और पत्तियां दोनों ही माध्यम आकार की होती है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 16 से 20 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

गुजरती अमरेन्थ 2:- इस क़िस्म के पौधे बीज रोपाई के 91 दिन बाद पककर तैयार हो जाते है, तथा हरी फसल की कटाई 33 दिन बाद कर सकते है | इसमें निकलने वाले पौधे और पत्तियां दोनों ही आकार में लम्बे होते है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 21 से 25 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

Chaulai ki kheti, Methods, Improved Varieties, Profit & Loss

गुजरती अमरेन्थ 2:- इस क़िस्म के पौधे बीज रोपाई के 91 दिन बाद पककर तैयार हो जाते है, तथा हरी फसल की कटाई 33 दिन बाद कर सकते है | इसमें निकलने वाले पौधे और पत्तियां दोनों ही आकार में लम्बे होते है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 21 से 25 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

(Chaulai ki kheti) चौलाई के खेत की तैयारी एवं उवर्रक की मात्रा (Amaranth Field Preparation and Fertilizer Quantity)

(Chaulai ki kheti) चौलाई की अच्छी पैदावार के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरुरत होती है, ताकि बीज अच्छे से अंकुरित हो | इसके लिए खेत की सबसे पहले गहरी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से ख़त्म हो जाते है | जुताई के पश्चात् कुछ दिनों के लिए खेत को ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है | इससे खेत की मिट्टी में सूर्य की धूप अच्छी तरह से लग जाती है |

इसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में 16 से 17 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालकर खेत की अच्छे से जुताई कर दी जाती है | जुताई के बाद उसमे पानी लगा दिया जाता है | पानी लगाने के कुछ दिन बाद जब खेत में पानी सूख जाता है, तो उसकी एक बार फिर से जुताई कर दी जाती है | इसके बाद खेत में रोटावेटर लगाकर मिट्टी को भुरभुरा कर दिया जाता है |

(Chaulai ki kheti) चौलाई के बीजो की रोपाई, समय और तरीका (Amaranth Seeds Sowing time and Method)

इसके बीजो की रोपाई, बीज के रूप में की जाती है | इसके बीजो की रोपाई में तीन तरीको का प्रयोग किया जाता है, पहला छिड़काव विधि द्वारा और दूसरा ड्रिल विधि के माध्यम से करते है | छिड़काव विधि में बीजो को सामान्य भूमि में छिड़क दिया जाता है, और कल्टीवेटर में हल्का सा पाटा लगाकर खेत में चला दिया जाता है | इससे बीज भूमि में गहराई तक चला जाता है |

(Chaulai ki kheti) चौलाई के पौधों की सिंचाई (Amaranth Plants Irrigation)

यदि चौलाई के बीजो की रोपाई नम भूमि में की गयी है, तो उन्हें प्रारंभिक सिंचाई की जरुरत नहीं होती है | किन्तु सूखी भूमि में की गयी रोपाई के बाद पानी तुरंत लगा दे, तथा बीज अंकुरण के समय तक खेत में नमी बनाये रखे | हरी फसल की पैदावार प्राप्त करने के लिए इसके पौधों को सप्ताह में 2 बार पानी देना होता है | इसके अलावा बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही पानी दे |

(Chaulai ki kheti) चौलाई की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Amaranth Crop Weed Control )

चौलाई की फसल को खरपतवार नियंत्रण की अधिक आवश्यकता होती है | यदि आप फसल को हरी पत्ती के रूप में प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खरपतवार पर अधिक ध्यान देना होता है | क्योकि खरपतवार से हरी फसल में कीट रोग लगने का खतरा सामने आ जाता है, जो पैदावार के लिए काफी हानिकारक है |

खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि निराई – गुड़ाई तरीके का इस्तेमाल करते है | इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 11 से 12 दिन पश्चात् की जाती है, तथा इसके बाद की गुड़ाई को 42 दिन पश्चात करना होता है | इसके पौधों को केवल दो से चार गुड़ाई की ही जरूरत होती है |

(Chaulai ki kheti) चौलाई की पौध में लगने वाले रोग एवं रोकथाम (Amaranth Plant Diseases and Prevention)

पर्ण जालक:- इस क़िस्म का रोग कीड़े के रूप में पौधों पर आक्रमण करता है | पर्ण जालक रोग की सुंडी पौधों की पत्तियों पर आक्रमण कर उन्हें खाकर बर्बाद कर देती है, जिससे पत्तियां जालीदार दिखाई देने लगती है | इस रोग से बचाव के लिए क्यूनालफास या डाई मिथेएट का छिड़काव चौलाई के पौधों पर करे |

जड़ गलन:- (Chaulai ki kheti) चौलाई के पौधों पर, इस क़िस्म का रोग फफूंद के रूप में सामने मिलता है | जड़ गलन रोग खेत में ज्यादा समय तक जल भराव होने पर दिखाई देता है | चौलाई के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए खेत में जल भराव की समस्या नहीं होने दे, तथा रोग लगने के बाद बोर्डो मिश्रण का छिड़काव पौधों की जड़ो पर करे |

पाउडरी मिल्ड्यू:- इस क़िस्म का रोग पौधों पर किसी भी अवस्था मेंनजर आ सकता है | यदि इस रोग की समय पर रोकथाम नहीं की जाती है, तो यह पैदावार को बहुत हानि पहुंचाता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर येल्लो और भूरे रंग की चित्तियाँ बन जाती है, जो कुछ समय बाद ही सम्पूर्ण पत्ती के ऊपर पाउडर बना देती है | इस रोग से बचाव के लिए काढ़े या नीम के तेल का छिड़काव पौधों पर किया जाता है |

ग्रासहोपर:-(Chaulai ki kheti) इस क़िस्म का रोग चौलाई के पौधों पर कीट के रूप में आक्रमण करता है | यह कीट रोग पौधों की पत्तियों को ज्यादा हानि पहुँचाता है, जिससे सम्पूर्ण पैदावार के नष्ट होने का खतरा होता है | ग्रासहोपर रोग का कीट पौधों के तनो और पत्तियों को पूरी तरह से खाकर नष्ट कर देता है | चौलाई के पौधों पर फोरेट का हल्का छिड़काव कर इस रोग से फसल को बचा सकते है |

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(Chaulai ki kheti) चौलाई के फसल की कटाई, पैदावार एवं लाभ (Amaranth Crop Harvesting, Yield and Benefits)

(Chaulai ki kheti) चौलाई के पौधों की कटाई तीन बार पैदावार प्राप्त करने के लिए की जाती है | इसके हरी फसल की कटाई के लिए बीज रोपाई के 31 से 42 दिन पश्चात् पौधों की कटाई कर ले | इसके अतिरिक्त पकी फसल की कटाई के लिए बीज रोपाई से 111 दिन तक इंतजार करना होता है | हरी फसल के रूप में एक हेक्टेयर के खेत से 102 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है, तथा पकी फसल से प्रति हेक्टेयर 16 क्विंटल दानो की पैदावार प्राप्त हो जाती है | जिससे किसान भाई इसकी दो बार की फसल से अच्छी कमाई कर सकते है |

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