चने की खेती (Gram Farming)
(Gram Farming)चना एक रबी फसल है, जिसकी खेती पूरे भारत में की जाती है | पूरी दुनिया का 76 प्रतिशत चना भारत में ही उगाया जाता है | चना मानव शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक होता है, इसमें 22 प्रतिशत प्रोटीन तथा 62 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पाई जाती है | सुबह के समय भीगे हुए चने का सेवन करने से पूरे दिन शरीर में एक्टिवनेस बनी रहती है | इसके अलावा चने से कई तरह के खाने की डिस बनाया जाता है | कच्चे के रूप में चने का सेवन करने के लिए इसकी फलों को भूनकर खाते है |
इसकी कच्ची पत्तियों को भी सब्जी, चटनी और रोटी के रूप में बनाकर खाया जाता है। आज हम इस लेख में चने की खेती के बारे में बताने जा रहे है।
(Gram Farming)चने की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Gram Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
(Gram Farming)चने की खेती किसी भी उपजाऊ और उचित जल निकासी वाली मिट्टी में की जा सकती है चने की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 7 से 7.5 के मध्य होना चाहिए | चने का पौधा ठंडी जलवायु वाला होता है, इसकी खेती में पानी की पूर्ति के लिए बारिश के समय में पौधों की रोपाई की जाती है, तथा ज्यादा वर्षा भी पौधों के लिए हानिकारक होती है | इसके पौधे ठंडी जलवायु में अच्छे से विकास करते है, किन्तु सर्दियों के मौसम में गिरने वाला वाले पौधों को हानि पहुँचाता है |
(Gram Farming)अधिक गर्मी के मौसम में इसके पौधों पर कई तरह के रोग और दाग-धब्बे देखने को मिल जाते है | अधिकतम तापमान में चने की खेती आसानी से नहीं की जा सकती है | इसके पौधों 21 डिग्री तापमान में अच्छे अंकुरित होते है | चने का पौधा अधिकतम 31 डिग्री तथा न्यूनतम 11 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकता है, इससे कम तापमान पैदावार को प्रभावित करता है|
(Gram Farming)चने की उन्नत किस्में (Gram Improved Varieties)
(Gram Farming)चने की ज्यादा पैदावार प्राप्त करने के लिए बाज़ारो में कई तरह की उन्नत किस्में मिल जाती है, यह सभी किस्में अलग अलग दो प्रजातियों में विभाजित की गई है, जिनमे देशी और काबुली प्रजाति शामिल है |
(Gram Farming)देशी क़िस्म के चने (Gram Native Varieties)
(Gram Farming)इस प्रजाति में दानो का आकार छोटा पाया जाता है | इस क़िस्म के चनो को दाल और बेसन बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है | चने की देशी प्रजाति भारत में सबसे अधिक उपजायी जाती है |
जे. जी. 11:- (Gram Farming)इस क़िस्म के पौधे को तैयार होने में 111 दिन का समय लग जाता है, तथा इसमें निकलने वाले दाने थोड़े पीले होते है | चने की इस क़िस्म को सिंचित और असिंचित दोनों ही जगहों पर उगाने के लिए रेडी किया गया है | जिसमे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 19 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है |
इंदिरा चना:- (Gram Farming)इस क़िस्म के पौधों पर फफूंद जनित कटवा और उखटा रोग देखने को मिलता है | इसके पौधे सामान्य ऊंचाई वाले होते है, जिन्हे कम सिंचाई की जरुरत होती है | चने की यह क़िस्म पौध रोपाई के 121 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है | जिससे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 21 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है |
हिम:- (Gram Farming)चने की यह क़िस्म पौध रोपाई के 142 दिन बाद उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते है, इसके पौधे अधिकतम लंबाई के होते है, जिसमे निकलने वाले दानें हल्के हरे होते है | जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 18 क्विंटल होता है|
वैभव:- (Gram Farming)इस क़िस्म के पौधों को तैयार होने में 112 से 115 दिन समय लग जाता है | जिसमे निकलने वाले दानो का आकार अधिकतम और रंग में कत्थई होता है | इसके पौधे सामान्य तापमान में ही सरवाइब कर पाते है, तथा इसके पौधों में उखटा रोग नहीं लगता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 16 क्विंटल की पैदावार दे देती है |
(Gram Farming)काबुली क़िस्म का चना
काबुली प्रजाति के चनो को सिंचित जगहों पर उगाने के लिए रेडी किया गया है | इस क़िस्म के चनो की दाल तथा सब्जी अधिक इस्तेमाल में लायी जाती है, तथा इसकी खेती भी व्यापारिक अवस्यक्ताओं को तैयार करने के लिए की जाती है |
जे जी के – 2:- चने की इस क़िस्म को कम समय में उगाने के लिए रेडी किया गया है | इसके पौधे बीज रोपाई के 91 से 102 दिन बाद पककर तैयार हो जाते है | जिसमे निकलने वाले दानो का रंग हल्का पीला तथा सफ़ेद पाया जाता है | इसके पौधे उखटा रोग से बचे होते है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 21 क्विंटल की पैदावार दे देती है |
मेक्सीकन बोल्ड:- (Gram Farming)चने की यह क़िस्म भी कम समय में पैदावार देने के लिए उपजायी जाती है, इसका पौधा 91 से 95 दिनों में उत्पादन देना आरम्भ कर देता है, तथा इसमें निकलने वाले दाने ग्रे, चमकदार और आकर्षक पाए जाते है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 26 क्विंटल की पैदावार दे देती है|
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(Gram Farming)चने के खेत की तैयारी और उवर्रक (Gram Field Preparation and Fertilizer)
(Gram Farming)चने के बीजो की रोपाई से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से रेडी कर लिया जाता है, इसके लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से गहरी जुताई कर दी जाती है | जुताई के बाद खेत को 10-12 दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे | इससे खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लगने से मिट्टी में मौजूद हानिकारक तत्व पूरी तरह से नष्ट हो जाते है |
खेत की पहली जुताई के बाद उसमे 12 से 13 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | खाद को खेत में डालने के बाद जुताई कर मिट्टी में खाद को अच्छी तरह से मिक्स कर दिया जाता है |
इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव किया जाता है, पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी सूखी दिखाई देने लगे उस समय कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की 3-4 तिरछी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को बराबर कर दिया जाता है, इससे खेत में जल जमाव नहीं होता है | चने की जड़ो में गांठे भूमि में होती है, जो भूमि से ही नाइट्रोजन के आवश्य्कताओं की पूर्ती करती है | जिस वजह से इसके पौधों को रासायनिक उवर्रक की अधिक जरूरत नहीं होती है, और जैविक उवर्रक को सबसे उपयोगी मन जाता है ।
(Gram Farming)चना बोने का सही समय और तरीका (Gram Seeds Sowing Right time and Method)
(Gram Farming)चने के बीजो की बुवाई बीज के रूप में की जाती है | एक एकड़ के खेत में देशी क़िस्म के बीजो की रोपाई के लिए 82 से 100 KG बीजो की आवश्यकता होती है, तथा काबुली क़िस्म के लिए 65 से 80 KG बीज की आवश्यकता होती है | इन बीजो की रोपाई से पहले उन्हें गोमूत्र, थिरम, कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | इससे बीज में रोग लगने का खतरा काफी कम हो जाता है, और बीजो का अंकुरण भी अच्छे से होता है |
(Gram Farming)इसके बीजो की बुवाई रबी फसल के साथ की जाती है, सिंचित और असिंचित जगहों पर बीजो की बुवाई का समय अलग-अलग होता है | सिंचित जगहों पर बीजो की रोपाई के लिए नवंबर से दिसंबर के मध्य का महीना सबसे उपयुक्त होता है, तथा असिंचित जगहों पर बीजो की रोपाई अगस्त से अक्टूबर माह के मध्य की जाती है |
बीजो की बुवाई तथा रोपाई मशीन द्वारा की जाती है, जिसके लिए खेत में पंक्तियों को तैयार कर लिया जाता है, तथा प्रत्येक पंक्ति के मध्य डेढ़ से दो फ़ीट की दूरी रखी जाती है | पंक्तियों में इन बीजो को 22 से 25 CM की दूरी पर 6 से 7 CM की गहराई में लगाना होता है |
(Gram Farming)चने के पौधों की सिंचाई (Gram Plants Irrigation)
चने की 72 से 75 प्रतिशत बुवाई असिंचित जगहों पर की जाती है | जिस वजह से इसके पौधों को अधिक पानी की जरुरत नहीं होती है | जबकि सिंचित जगहों पर पौधों को पानी देना अनिवार्य होता है | इसके पौधों को अधिकतम चार से पांच बार सिंचाई की जरूरत होती है, इसकी पहली सिंचाई बीज रोपाई के 32 से 35 दिन बाद की जाती है, तथा उसके बाद की सिंचाई को 26 से 30 दिन के अंतराल में करना होता है |
(Gram Farming)चने के पौधों की कटाई, पैदावार और लाभ (Gram Plants Harvesting, Yield and Benefits)
(Gram Farming)चने की उन्नत किस्मे बीज रोपाई के 110 से 120 दिन बाद कटने के लिए तैयार हो जाती है| जब इसके पौधों पर लगी पत्तियों का रंग पूरा पीला दिखाई दे और दाने भी कठोर हो जाये उस दौरान इनकी कटाई कर ले| इसके पौधों की कटाई जड़ से की जाती है| कटाई के बाद पौधों को कुछ समय के लिए खेतों में ही 4-5 दिन के लिए छोड़ दिया जाता है |
पौधे सूखने के बाद इसके दानो को थ्रेसर की सहायता से दानें को निकाल लिया जाता है | एक हेक्टेयर के खेत से 16 से 22 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | चने का बाज़ारी भाव 6 हजार से 8 हज़ार रूपए प्रति क्विंटल होता है, जिससे किसान भाई चने की खेती कर एक हेक्टेयर के खेत से 80 हजार से 1 लाख तक की कमाई कर सकते है|
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