अरहर की खेती कैसे होती है?
अरहर, जिसे तुअर दाल या पिगन पीआर भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण दलहनीय पौधा है और यह भारतीय खाद्य सामग्री का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह खेती किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प है, क्योंकि इससे अच्छी आदतें लाभकारी हो सकती हैं। यहां अरहर की खेती की एक सामान्य प्रक्रिया है।
अरहर की खेती में सबसे पहले बुआई की जाती है। बुआई का समय आमतौर पर मार्च से मई तक होता है, जब मिट्टी गरम और सुक्ष्म नमी से भरी होती है। बीजों की दूरी और पंक्तिबद्ध बुआई की जाने वाली गहराई पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। जब पौधे उग जाते हैं और उनमें 4-5 पत्तियां हो जाती हैं, तो कुछ पौधे को पलायन किया जा सकता है। इससे बाकी के पौधों को ज्यादा स्थान और पोषण मिलता है अरहर के पौधों को पोषण के लिए उर्वरक दिया जा सकता है। यहां पोषण की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उर्वरकों का चयन करना महत्वपूर्ण है।
अरहर के पौधों को सही मात्रा में पानी देना भी अच्छे उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है। पौधों को अधिक पानी नहीं देना चाहिए, क्योंकि यह उन्हें बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। बीमारियों, कीटाणुओं और विषाणुओं से बचाव के लिए फसल की देखभाल की जानी चाहिए। आवश्यकता होने पर कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
अरहर की पूरी तैयारी के बाद, फसल को काटा जाता है। इसके बाद, फसल को अंडाढ़ी में सुखाया जा सकता है। ये कुछ सामान्य कदम हैं जो अरहर की खेती में लिए जा सकते हैं। हर क्षेत्र की मिट्टी, जलवायु, और अन्य स्थानीय तथा कृषि तकनीकी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, किसानों को अपनी खेती को सही ढंग से प्रबंधित करना चाहिए।
अरहर की खेती के लिए उचित जलवायु और तापमान:
अरहर की खेती के लिए उचित जलवायु और तापमान महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि यह पौधों की उन्नति और प्रबंधन को प्रभावित कर सकते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण जलवायु और तापमान पैरामीटर्स हैं जो अरहर की खेती के लिए उचित हो सकते हैं।
अरहर के पौधों के लिए उचित बर्फाती जलवायु आवश्यक है, जो उन्हें अच्छी तरह से बूटने और फलने की स्थिति में रखती है। अरहर की खेती के लिए पर्याप्त मौसमी बारिश का होना जरूरी है, क्योंकि इसमें उच्च उर्वरक मिलता है जो पौधों के लिए आवश्यक है। अरहर की खेती के लिए उचित तापमान रेंज मुख्यत: 25-30 डिग्री सेल्सियस के बीच होनी चाहिए। यह तापमान पौधों की अच्छी उन्नति के लिए सही होता है। पौधों को फूलने और फलने के लिए उचित ठंडा तापमान भी महत्वपूर्ण है, खासकर जब पौधों में फूल बनते हैं और फलों का उत्पन्न होता है। अरहर की खेती के लिए सही वर्षा वितरण महत्वपूर्ण है। पानी की अच्छी आपूर्ति और उचित सिंचाई पौधों के लिए आवश्यक है।
अरहर पौधों को अच्छी उन्नति के लिए धूप और प्रकाश की अच्छी संख्या में होना चाहिए। इससे पौधों की तेजी से बूटने में मदद होती है। ये सभी पैरामीटर्स समझदारी गई हैं, लेकिन इससे पहले कि आप खेती शुरू करें, स्थानीय कृषि विज्ञानी से संपर्क करें और उनसे अपने क्षेत्र के लिए उचित जलवायु और तापमान की जानकारी प्राप्त करें।
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अरहर की खेती के लिए उचित भूमि:
यदि किसान भाई अरहर की अच्छी फसल करना चाहते है, तो उसके लिए उचित भूमि का चुनाव जरूरी होता है | जीवांश युक्त बलुई दोमट वा दोमट मिट्टी वाली भूमि को इसके खेती के लिए अच्छा माना जाता है | इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली ढालू जगह को सर्वोत्तम माना जाता है |
लवणीय तथा क्षारीय भूमि को इसकी फसल के उपयुक्त नहीं माना जाता है | इसके अलावा काली मृदा वाले खेत में भी सफलतापूर्वक इसकी फसल को उगाया जाता है | अधिक उत्पादन के लिए जल धारण व चूने की पर्याप्त मात्रा वाली जगह को उचित माना जाता है |
अरहर के खेत की तैयारी:
अरहर के खेत की तैयारी को ध्यानपूर्वक और सही तरीके से करना महत्वपूर्ण है ताकि पौधे अच्छे से बूटे और फलें। मिट्टी की तैयारी महत्वपूर्ण है। अरहर को अच्छे से बूटने के लिए लोमड़ी मिट्टी अच्छी रहती है। मिट्टी को अच्छे से खोदकर और इसमें कमी करके तैयार किया जा सकता है।
बुआई से कुछ हफ्ते पहले खेत को तैयार करें। इसमें अच्छी कमी, खाद और जल सब उपयुक्त प्रमाण में मिश्रित करें। उच्च गुणवत्ता वाले और स्थानीय उद्योगों से प्राप्त किए गए अच्छे गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करें। बुआई का समय अच्छे मौसम और तापमान की स्थिति में करें। यह बुआई को अच्छे से बूटने में मदद करेगा।
बीजों को पंक्तिबद्ध बुआई की जानी चाहिए ताकि पौधों को अच्छी दूरी और व्यापकता मिले। अरहर की पौधों को उचित सिंचाई प्रदान करना महत्वपूर्ण है, खासकर जब पौधे बूटने और फलने लगते हैं। पौधों को उचित पोषण प्रदान करना भी महत्वपूर्ण है। यह उर्वरकों की आवश्यकता के अनुसार हो सकता है।
पौधों के सही रोपाई और बुआई का ख्याल रखना भी जरूरी है। यह पौधों को अच्छे से सहारा देगा। पौधों को रोग और कीटों से बचाव के लिए उपयुक्त प्रबंधन करें। ये हैं कुछ मुख्य चरण जो अरहर के खेत की तैयारी में लिए जा सकते हैं। स्थानीय शर्तों, मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर, आपको अपने खेत के लिए सही तकनीकी निर्देशन प्राप्त करना चाहिए।
अरहर की उन्नत किस्मे:
अरहर की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं जो किसानों को अच्छा उत्पादन प्रदान कर सकती हैं।
आर्यवर्ता (Aryavarta): यह एक उन्नत अरहर की किस्म है जो उत्तर भारतीय क्षेत्रों के लिए सुझावित है। इसका उत्पादनात्मक क्षमता उच्च होती है और यह विभिन्न जलवायु और मौसमी शर्तों में अच्छा काम कर सकता है।
तूर्य (TU-94-2): यह भी एक उन्नत अरहर की किस्म है जिसका उत्पादनात्मक क्षमता अच्छी है। यह तापमान और वायुमंडल के बदलते तात्कालिक बदलावों के साथ अच्छी तरह से समायोजित हो सकता है।
काली बहुल (Co-6): यह एक अन्य प्रसिद्ध उन्नत अरहर की किस्म है जिसे विभिन्न क्षेत्रों में बोना जा रहा है। इसकी फसल काफी उत्पादक होती है और बीमारियों से सुरक्षा की जा सकती है।
यह एक उन्नत वैराइटी है जिसमें सुरक्षित खेती, बीमारी प्रतिरोध, और अच्छी उत्पादकता की गुणवत्ता होती है। यह भी एक उन्नत किस्म है जो भारतीय खेतों में बोई जा रहा है। इसमें उच्च उत्पादनात्मक क्षमता और बीमारियों से सुरक्षा की गुणवत्ता है। अरहर की किस्मों का चयन कृषि विज्ञानी और स्थानीय कृषि विभागों की सलाह के आधार पर किया जाना चाहिए, ताकि किसान स्थानीय जलवायु और मौसम के अनुसार सही किस्म का चयन कर सके।
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