Information on cultivation of pulses

दाल की खेती की जानकारी | Information on cultivation of pulses.

दाल की खेती की जानकारी | Information on cultivation of pulses

Information on cultivation of pulses: दालों की खेती के लिए उर्वरक और हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। खेत में गोबर की खाद और रासायनिक उर्वरकों का उचित मिश्रण करना चाहिए।

उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीजों का चयन करें जो आपके क्षेत्र के अनुकूल हों। बीज को उपचारित करना भी महत्वपूर्ण है। अधिकांश दालें गर्मी के मौसम में उगाई जाती हैं। उदाहरण के लिए, अरहर और मूंग के लिए अक्टूबर-नवंबर उपयुक्त समय है। आमतौर पर दालों की बुवाई पंक्तियों में की जाती है। पंक्तियों के बीच की दूरी और बीज की दूरी फसल के प्रकार पर निर्भर करती है।

दालों की खेती में निरंतर सिंचाई की आवश्यकता होती है। मृदा प्रकार और मौसम की स्थिति के आधार पर सिंचाई अंतराल तय किया जाता है। पौधों की बढ़वार के शुरुआती चरणों में खरपतवार नियंत्रण महत्वपूर्ण है। इसके लिए हाथ से निराई या रासायनिक खरपतवारनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है।

दालों में कई प्रकार के कीट और रोग आ सकते हैं। उचित जैविक या रासायनिक उपचारों से उनका नियंत्रण किया जा सकता है। पके फलियों को हाथ से या मशीन से काटा जाता है। फलियों को सुखाकर साफ बीज अलग किए जाते हैं और उचित तरीके से भण्डारित किया जाता है।

दालों की उन्नत किस्में, उचित खेती तकनीकों और सही समय पर देखभाल से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। किसानों को इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्रों की सलाह लेना चाहिए।

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भारत में कितने प्रकार की दाल की खेती की जाती है?

भारत में विभिन्न प्रकार की दालों की खेती की जाती है। निम्नलिखित टेबल में मुख्य दालों के बारे में जानकारी दी गई है:

दाल का नाम उत्पादक राज्य फसल अवधि उपज (क्विंटल/हेक्टेयर)
अरहर (तुअर दाल) महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक 120-150 दिन 8-12
मसूर (लाल दाल) महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश 90-120 दिन 6-10
चना (कबुली चना) मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा 90-120 दिन 10-15
मूंग (हरी दाल) राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक 60-90 दिन 4-6
उरद (मसूर दाल) आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश 90-120 दिन 5-8
मटर (बटर दाल) उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान 90-120 दिन 10-15
मूंगफली गुजरात, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक 90-120 दिन 10-15
राजमा (राजमा दाल) छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल 90-120 दिन 6-10

इस टेबल से स्पष्ट है कि भारत में विभिन्न प्रकार की दालें उगाई जाती हैं और उनकी फसल अवधि, उपज और प्रमुख उत्पादक राज्य अलग-अलग हैं। उपर्युक्त आंकड़े औसत उपज को दर्शाते हैं और वास्तविक उपज कृषि तकनीकों, मौसम और क्षेत्र विशेष पर निर्भर करती है।

भारत में किये गए दाल की खेती का अन्य देशों में भी निर्यात :

भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की दालों का निर्यात अन्य देशों में भी किया जाता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दालों का उत्पादक और निर्यातक देश है।

कुछ प्रमुख निर्यात किए जाने वाले दालों और उनके गंतव्य देशों के बारे में विवरण इस प्रकार है:

  1. मसूर (लाल दाल) – अरब अमीरात, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार आदि।
  2. चना (कबुली चना) – पाकिस्तान, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, म्यांमार आदि।
  3. मूंग (हरी दाल) – संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, म्यांमार, मलेशिया, सिंगापुर आदि।
  4. उरद (मसूर दाल) – संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, म्यांमार, मलेशिया, श्रीलंका आदि।
  5. मटर (बटर दाल) – पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, नेपाल आदि।
  6. अरहर (तुअर दाल) – संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, मलेशिया आदि।

भारत सरकार दालों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रोत्साहन और नीतियां लागू करती है। पिछले कुछ वर्षों में मसूर, चना और मूंग दालों का निर्यात काफी बढ़ा है। निर्यात से न केवल किसानों को लाभ मिलता है बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है।

दाल की खेती से किसानों को होने वाला लाभ :

दाल की खेती से किसानों को प्राप्त होने वाला लाभ कई कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि किस्म, उपज, बाजार मूल्य, लागत आदि। निम्नलिखित टेबल में विभिन्न दालों की खेती से औसत लाभ प्रति हेक्टेयर दिया गया है:

दाल का नाम औसत उपज (क्विंटल/हेक्टेयर) औसत बाजार मूल्य (रु/क्विंटल) कुल आय (रु/हेक्टेयर) खेती की लागत (रु/हेक्टेयर) शुद्ध लाभ (रु/हेक्टेयर)
अरहर (तुअर दाल) 10 6,000 60,000 25,000 35,000
मसूर (लाल दाल) 8 7,000 56,000 20,000 36,000
चना (कबुली चना) 12 5,000 60,000 22,000 38,000
मूंग (हरी दाल) 5 7,500 37,500 15,000 22,500
उरद (मसूर दाल) 6 6,500 39,000 18,000 21,000
मटर (बटर दाल) 12 4,500 54,000 25,000 29,000
मूंगफली 12 5,500 66,000 30,000 36,000
राजमा (राजमा दाल) 8 6,000 48,000 20,000 28,000

इस टेबल से स्पष्ट है कि दालों की खेती से किसानों को काफी अच्छा लाभ प्राप्त होता है। सबसे अधिक लाभ चना और मूंगफली की खेती से मिलता है, जबकि मूंग और उरद की खेती से औसत से कम लाभ होता है।

हालांकि, यह लाभ उत्पादन लागत, बाजार की स्थिति और कई अन्य कारकों पर निर्भर करता है। उन्नत कृषि तकनीकों और सरकारी सहायता से इस लाभ को और अधिक बढ़ाया जा सकता है। दाल की खेती न केवल किसानों के लिए लाभकारी है बल्कि यह पोषण सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है।

दाल की खेती से खेत के उर्वरक पर क्या असर परता है?

दाल की खेती से खेत की उर्वरा शक्ति और मिट्टी के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

  1. नाइट्रोजन स्थिरीकरण: दालों की जड़ों में रहने वाले जीवाणु नाइट्रोजन को स्थिर करते हैं और मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाते हैं। यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मदद करता है।
  2. फसल अवशेष: दाल की खेती के बाद खेत में छोड़े गए तना, पत्ती आदि से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है, जो मिट्टी की संरचना और उर्वरा शक्ति को बेहतर बनाता है।
  3. फसल चक्र: दालों को अन्य फसलों के साथ फसल चक्र में शामिल किया जा सकता है। यह मिट्टी से पोषक तत्वों के अत्यधिक दोहन को रोकता है और उर्वरा शक्ति बनाए रखने में मदद करता है।
  4. कम रसायनों का उपयोग: दालों की खेती में अन्य फसलों की तुलना में कम रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी प्रदूषण कम होता है। Information on cultivation of pulses
  5. मिट्टी संरक्षण: दालों की जड़ें मिट्टी को बांधने में मदद करती हैं और मिट्टी के कटाव को रोकती हैं, जिससे मिट्टी का क्षरण कम होता है। Information on cultivation of pulses

हालांकि, यदि लगातार दालों की खेती की जाती है और उचित खेत प्रबंधन तकनीकों का पालन नहीं किया जाता है, तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए उचित फसल चक्र, उर्वरक प्रबंधन और कृषि पद्धतियों का पालन करना महत्वपूर्ण है। Information on cultivation of pulses

 

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