चकबंदीChakbandi क्या होता है?, इसके 2 प्रकार, अधिनियम और कानून

चकबंदीChakbandi क्या होता है?, इसके 2 प्रकार, अधिनियम और कानून

चकबंदीChakbandi किसे कहते है? इसके कानून, नियम व अधिनियम ।

चकबंदी(Chakbandi)

(Chakbandi) पुरे विश्व में भारत को गावों का देश कहा जाता है और आज भी देश की लगभग 60 से 70 प्रतिशत जनसँख्या ग्रामीण क्षेत्रो में निवास करती है| गांवों में रहनें वाले लोगो के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन खेती है| देश की निरंतर बढ़ती हुई जनसँख्या और परिवारों के विभाजन के कारण खेतों के आकार कम होते जा रहे है| जिससे फसलों की उत्पादन क्षमता काफी कम होनें के साथ ही खेती करने में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है |

यहाँ तक कि किसानों के बीच खेत की सीमाओं को लेकर झगड़ा की स्थिति बन जाती है | किसानों को इस प्रकार की समस्याओं से समाधान दिलानें के लिए सरकार द्वारा चकबंदी करायी जाती है| आइये आज चकबंदी विशेष जानकारी प्रदान।

चकबंदी क्या होता है? (What is Chakbandi)?

चकबंदीChakbandi शब्द ‘चक’ और ‘बंदी’ इन दो शब्दों से मिलकर बना है | जिसमें ‘चक’ का मतलब भूमि तथा ‘बंदी’ का मतलब बंदोबस्त यानि व्यवस्था करना अर्थात छोटे-छोटे भूमि के खण्डों को मिलाकर एक बड़ा भूखंड या खेत निर्माण किया जाता है | दरअसल चकबंदी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत किसानों के इधर-उधर बिखरे हुए खेतों को उनके आकार के आधार पर उन्हें एक स्थान पर करके एक बड़ा चक बना दिया जाता है। इससे किसानों को खेती करनें में आसानी के साथ ही उनके चकों की संख्या भी ज्यादा नहीं होने देती है|

उदाहरण:– यदि किसी किसान के छोटे-छोटे खेत अलग-अलग और कुछ दूरी पर है, तो उनके अलग-अलग खेतों के आकार के आधार पर उन्हें किसी एक स्थान पर उतनी ही भूमि देना चकबंदी कहलाता है| इस प्रकार चकबन्दी एक परिवार के बिखरे हुए खेतों को एक स्थान पर करने की क्रिया है, परन्तु चकबन्दी प्रक्रिया में कृषक को उसी प्रकार की भूमि मिलना पॉसिबल नहीं होता है, जैसी उनकी भूमि अलग-अलग स्थाओं पर थी|

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चकबंदी के प्रकार (Types Of Chakbandi)

चकबन्दी 2 प्रकार की होती है, जो इस प्रकार है:-

1. ऐच्छिक चकबन्दी
2 . अनिवार्य चकबन्दी

1.ऐच्छिक चकबन्दी (Elective Consolidation):- ऐच्छिक चकबन्दीChakbandi का मतलब ऐसी चकबंदी से है, जो किसानों की सहमति अर्थात कृषकों की इच्छा पर डिपेंड होती है | दूसरे शब्दों में किसानों की इच्छा से होनें वाली चकबंदी को ऐच्छिक चकबन्दी कहते है | इस प्रकार की चकबंदी करानें के लिए किसानों पर किसी तरह का प्रेशर नहीं डाला जाता है| ऐच्छिक चकबन्दी का सबसे बड़ा प्रॉफिट- चकबंदी के बाद में किसानों के बीच विवाद उत्पन्न होनें की संभावना ख़त्म हो जाती है|

भारत में ऐच्छिक चकबन्दीChakbandi की शुरुआत स्वतंत्रता से पूर्व वर्ष 1922 में पंजाब प्रान्त में सहकारी समितियों द्वारा की गयी थी| आपके जानकारी के लिए बता दें कि भारत में मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), गुजरात (Gujrat) और पश्चिम बंगाल (West Bengal) में ऐच्छिक चकबन्दी क़ानून आज भी लागू है।

2. अनिवार्य चकबन्दी (compulsory consolidation):- अनिवार्य चकबन्दीChakbandi को कानूनी चकबंदी के नाम से भी जाना जाता है | अनिवार्य चकबन्दीChakbandi का आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है, जिसमें किसानों को अनिवार्य रूप से चकबन्दी करानी आवश्यक होती है। इस प्रकार की चकबंदी में काफी समय लगता है, इसके साथ ही विवाद होनें की सम्भावनायें काफी ज्यादा होती है| गुजरात, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश को छोड़कर नागालैण्ड, मिजोरम, केरल, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, मणिपुर, , त्रिपुरा और मेघालय में चकबन्दी से सम्बंधित कोई कोई क़ानून नहीं है। इन राज्यों के अलावा अन्य सबी राज्यों में अनिवार्य चकबन्दी क़ानून लागू है।

चकबंदीChakbandi क्या होता है?, इसके 2 प्रकार, अधिनियम और कानून

चकबंदीChakbandi करनें का मुख्य उद्देश्य कृषकों की विभिन्न जगहों पर बिखरी हुई भूमि को किसी अन्य स्थान पर एक बड़े चक अर्थात खेत में परिवर्तित करना है| चकबंदी प्रक्रिया के माध्यम से किसानों के खेतों की संख्या कम होनें के साथ ही उन्हें कृषि कार्य करनें में काफी आसानी होती है| कृषकों के खेतों का आकार बड़ा हो जानें से वह कृषि संसाधनों का समुचित उपयोग कर पाते हैं, जिसका सीधा प्रभाव कृषि उत्पादन पर पड़ता है।

गांवों में अक्सर लोग दूसरों या कमजोर लोगो की भूमि पर अपना हक़ जमा लेते है, इसके साथ ही कुछ लोग गाँव की सार्वजनिक भूमि पर भी अवैध रूप से बेक़ाबिज हो जाते है | चकबंदी होनें पर इस प्रकार की भूमि को अवैध कब्जेदारों से फ्री करा लिया जाता है | इससे सबसे बड़ा लाभ यह है, कि किसानों के बीच विभिन्न प्रकार के आपसी विवाद ख़त्म करना होता है|

चकबंदी के संविधान (Chakbandi Rules And Regulations)

  • चकबंदीChakbandi के लिए राज्य सरकार द्वारा जोत चकबंदी अधिनियम की धारा 4(1), 4(2) के अंतर्गत गांवों में चकबन्दी के लिए अधिसूचना प्रकाशित की जाती है|
  • इसके बाद धारा 4क (1), 4क (2) के अंतर्गत चकबंदी आयुक्त द्वारा पुनः चकबंदी प्रक्रिया शुरू करने की अधिसूचना जारी की जाती है|
  • चकबंदीChakbandi से सम्बंधित अधिसूचना जारी होने के पश्चात उस गाँव के सभी राजस्व न्यायालय में लंबित मुकदमे प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाते हैं। इस दौरान कोई भी कृषक बिना चकबंदी बंदोबस्त अधिकारी की अनुमति के अपनी खेत का उपयोग कृषि कार्य के आलावा किसी अन्य कार्य के लिए प्रयोग नहीं कर सकता |
  • चकबंदीChakbandi की अधिसूचना जारी होने के पश्चात चकबंदी समिति का स्थापना किया जाता है, जिसमें भूमि प्रबंधन समिति के मेमबर शामिल होते है| चकबंदी प्रक्रिया के दौरान यह समिति चकबंदी अधिकारियों का मदद करनें के साथ ही उचित सलाह देने का कार्य करती है|
  • इसके बाद चकबंदीChakbandi लेखपाल चकबंदी की धारा-8 के तहत मौके पर भूमि का निरीक्षण कर अधिनियम की धारा-7 के अंतर्गत भूमि के नक़्शे में संशोधन करनें का कार्य करता है | लेखपाल द्वारा वर्तमान स्थति के अनुसार गाटो की भौतिक स्थिति, पेड़, कुओं, सिंचाई के साधन आदि का ब्यौरा आकार पत्र-2 में दर्ज करता है |

भूमि चकबंदी फायदे (Land Consolidation Benefits)

  • खेती के वैज्ञानिक तरीके, बेहतर सिंचाई, मशीनीकरण जो समेकित जोत पर संभव है, और जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन की कम लागत + आय में वृद्धि होती है|
  • किसान भाइयों को एक खेत से दूसरे खेत में जाने में उनके समय, ऊर्जा और धन की बचत होती है।
  • किसान अपनी भूमि के सुधार पर पैसा खर्च करने के लिए प्रोत्साहित होते रहते है।
  • छोटे-छोटे खेतों के बीच सीमा बनाने में कोई जमीन छती नहीं होती है।
  • चकबंदी के बाद बची हुई भूमि का प्रयोग उद्यान, स्कूल, पंचायत घर, सड़क, खेल के मैदान आदि के निर्माण में सम्पूर्ण गांव के लाभ के लिए किया जा सकता है।

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भूमि चकबंदीChakbandi समस्याएं और मुश्किलात (Land Consolidation Difficulties and Obstacles)

  • भारतीय किसान की रूढ़िवादी दिमागी सोच है। वह अपने पूर्वजों की भूमि का बंटवारा नहीं करना चाहता, भले ही वह आधुनिक कृषि विज्ञान/व्यवसाय प्रबंधन के सिद्धांत भूमि चकबंदी की वकालत करता हो।
  • अमीर किसान उपजाऊ भूमि के बड़े हिस्से के मालिक हैं। वह इस डर से चकबंदी का विरोध कर रहे हैं कि उनकी उर्वरक भूमि का हिस्सा किसी और किसान को नहीं मिलेगा।
  • कई क्षेत्रों में मौखिक समझौतों पर की गई खेती का कागजी रिकॉर्ड नहीं है।
  • तहसील के भीतर भूमि की गुणवत्ता/कीमत सिंचाई और उर्वरता के आधार पर भिन्न-भिन्न होगी। इसलिए, एक किसान को जमीन की गुणवत्ता के आधार पर पैसा देना होगा, जबकि वे एक-दूसरे के साथ अपनी जमीन का आदान-प्रदान करते हैं।
  • लेकिन भूमि सर्वेक्षण, कृषि सर्वेक्षण और अक्षम/भ्रष्ट राजस्व अधिकारियों की कमी के कारण यह मूल्य निर्धारण संभव नहीं है।
  • ग्राम/तहसील स्तर पर राजस्व अधिकारी अक्षम हैं और इस प्रकार के तकनीकी कार्य में प्रशिक्षित नहीं हैं।

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