मीठे आलू की खेती |
मीठे आलू की खेती के लिए हल्की, उपजाऊ और अच्छी नमी निकास वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पी.एच. मान 5.6 से 6.6 के बीच होना चाहिए। मीठे आलू के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण जलवायु सबसे अनुकूल होती है। गर्मियों में अधिक गर्मी और ठंड से फसल प्रभावित हो सकती है। आमतौर पर 90-120 सेमी की दूरी पर लंबाई और चौड़ाई वाली क्यारियों में गुच्छे लगाए जाते हैं। प्रत्येक गुच्छे में 30-45 सेमी की दूरी होनी चाहिए। अनुकूल मिट्टी दशाओं के लिए हर 7-10 दिन में सिंचाई की आवश्यकता होती है। गीली और दलदली मिट्टी से बचना चाहिए।
पौधों को विकसित होने के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाशियम की उचित मात्रा चाहिए। साथ ही खेत में पुआल और गोबर की खाद का भी उपयोग किया जा सकता है। समय-समय पर खरपतवार निकालना और मिट्टी को ढीला करना आवश्यक है ताकि पौधों को ठीक से विकसित होने का अवसर मिले। मीठे आलू को कई कीड़े और बीमारियां प्रभावित कर सकते हैं। इनकी रोकथाम और नियंत्रण के लिए नियमित निरीक्षण और उपयुक्त कीटनाशकों/कवकनाशकों का उपयोग किया जाना चाहिए।
मीठे आलू की खेती में आवश्यक मिट्टी, जलवायु तथा पानी की जानकारी |
मिट्टी:
मीठे आलू को उपजाऊ, हल्की, दोमट मिट्टी पसंद होती है जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो। मिट्टी का पी.एच. मान 5.6 से 6.6 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में काफी मात्रा में लेटराइट या बॉक्साइट होना चाहिए। दोमट और कम उपजाऊ मिट्टियों में उगाया गया मीठा आलू छोटा और कम गुणवत्ता वाला होता है।
जलवायु:
मीठे आलू को उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु पसंद होती है। यह फसल तापमान 25°C से 35°C के बीच अच्छी तरह उगती है। बहुत अधिक गर्मी और ठंड से इसकी उपज प्रभावित होती है। आर्द्र जलवायु भी इसके लिए अनुकूल होता है।
पानी:
मीठा आलू नमी की पर्याप्त आपूर्ति पसंद करता है। रोपाई के बाद पहले 2-3 महीने कम पानी की आवश्यकता होती है। कंद गठन अवस्था में पानी की मांग बढ़ जाती है। रोपाई के 4-5 महीने बाद मीठे आलू को हर 7-10 दिन में सिंचाई की आवश्यकता होती है। अधिक गीली मिट्टी से बचना चाहिए क्योंकि इससे कंदों में सड़न हो सकती है।
उचित मिट्टी, जलवायु और पानी प्रबंधन से ही किसान मीठे आलू की अच्छी गुणवत्ता और पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
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