काहू की खेती

काहू की खेती कैसे होती है? मिट्टी, जलवायु तथा लाभ ।

काहू की खेती कैसे होती है?

“काहू” का शब्द मुख्यत: उत्तर भारत में प्रचलित है और यहां आमतौर पर गेहूं को कहा जाता है। गेहूं एक मुख्य अनाज है जो अनेक जगहों पर खेती होता है।

गेहूं की खेती बीजों से शुरू होती है। किसान अच्छे गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करता है और उन्हें खेत में बोना जाता है। बुआई के बाद, बीजों को अच्छे से धंप दिया जाता है ताकि वे अच्छे से उग सकें।

गेहूं के पौधों को उच्च गुणवत्ता वाले उर्वरकों से पोषित किया जाता है। सही मात्रा में पानी भी प्रदान किया जाता है, जिससे पौधों को उच्च उत्पादकता हासिल होती है। गेहूं की खेती में कीटों का प्रबंधन करना भी महत्वपूर्ण है। किसान उपयुक्त कीटनाशकों का उपयोग करके फसल को कीटों से बचाता है।

गेहूं का सही समय पर हर्वेस्ट करना भी महत्वपूर्ण है। अगर हर्वेस्टिंग का समय ठीक नहीं रहता, तो फसल की क्षति हो सकती है। हर्वेस्ट होने के बाद, गेहूं को उचित भंडारण स्थल में सुरक्षित रखना महत्वपूर्ण है ताकि वह बाजार में बेचा जा सके और खाद्यान्न के रूप में उपयोग किया जा सके।

गेहूं की खेती में उपरोक्त कदमों का सख्ती से पालन करना, उचित तकनीकी ज्ञान प्राप्त करना, और अच्छे तरीके से प्रबंधन करना किसानों के लिए सफल खेती की कुंजी हो सकता है।

काहू की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी:

गेहूं की खेती के लिए अच्छी मिट्टी का चयन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मिट्टी की गुणवत्ता सीधे पौधों की उगाई गई फसल के उत्पन्नता और गुण को प्रभावित कर सकती है। गेहूं को उच्च पोषण देने के लिए मिट्टी में समृद्धि होनी चाहिए। समृद्धि का मतलब है मिट्टी में पोषक तत्वों की अच्छी मात्रा। गेहूं के पौधों के लिए उच्च उपज की आवश्यकता होती है और इसके लिए मिट्टी में अच्छे से उपस्थित भूमिरहित धातु सामग्री होनी चाहिए। काहू की खेती

गेहूं के पौधों के लिए मिट्टी की संरचना अच्छी होनी चाहिए, ताकि उसमें अच्छी तरह से वायु, पानी, और पोषण घोल सके। गेहूं के लिए उपयुक्त मिट्टी का pH स्तर सामान्यत: 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि मिट्टी में अच्छे से पोषण हो सके। गेहूं के लिए सबसे अच्छी मिट्टी वाणिज्यिक और लघुवाणिज्यिक दोनों प्रकार की होती है। काहू की खेती

किसानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपनी खेतों की मिट्टी की विशेषताओं को समझकर उचित खेती प्रणालियों का चयन करते हैं और उन्हें सुधारने के लिए उपायों का अनुसरण करते हैं। काहू की खेती

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काहू के भूमि की तैयारी और उवर्रक:

काहू की खेती में भूमि की तैयारी और उर्वरक का सही उपयोग महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह गेहूं की उच्च उपज और गुणवत्ता को सुनिश्चित करने में मदद करता है।

1. भूमि की तैयारी:

सही तैयारी के लिए, खेत को पहले प्लोइंग (हल चलाना) और फिर हैरोविंग (मिट्टी को छिद्रित करना) की जाती है। इससे मिट्टी खुलती है और अच्छे से फसल की उगाई जा सकती है।

यह तकनीक छोटे छोटे खुरप्पों का उपयोग करके मिट्टी को सुधारने के लिए की जाती है और समृद्धि को बढ़ाती है। इससे खेत की सतह को समान रूप से बनाए रखने के लिए बेहतर प्रबंधन होता है।

2. उर्वरक (फर्टिलाइजर):

गेहूं के लिए ये तीन प्रमुख पोषण तत्व आवश्यक हैं। नाइट्रोजन पौधों के सही विकास के लिए, फॉस्फोरस बीजों के उत्पन्नता के लिए, और पोटैशियम पौधों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। काहू की खेती में ओर्गेनिक उर्वरक का उपयोग भी किया जा सकता है, जैसे कि गोबर कंपोस्ट, खाद, और खेती अपशिष्ट (कचरा)। ये उर्वरक मिट्टी को सुधारने में मदद करते हैं और पोषण प्रदान करते हैं। काहू की खेती

खेत की मिट्टी को समझने के लिए मिट्टी की जाँच की जा सकती है, जिससे सही उर्वरकों की मात्रा और प्रकार का निर्धारण किया जा सकता है। एक सफल गेहूं की खेती के लिए, भूमि की तैयारी और उर्वरकों का सही से इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण है ताकि पौधों को सही पोषण मिल सके और उच्च उपज हो सके। काहू की खेती

काहू के बीज बुवाई का समय और तरीका:

काहू के बीजो को बीज और पौध दोनों ही तरीको से लगा सकते है| एक एकड़ के खेत में बीज बुवाई के लिए 250 GM लगते है| इसके अलावा प्रति एकड़ के खेत में तक़रीबन 32000 पौधे लगाये जा सकते है| इसके बीजो की बुवाई खेत में तैयार मेड़ पर की जाती है| इन मेड़ो को पंक्ति में तैयार कर लेते है, जिसमे पंक्ति से पंक्ति के बीच दो फ़ीट की दूरी हो| इन मेड़ो पर पौधों को एक फ़ीट के अंतराल पर लगाया जाता है| काहू की खेती

इसके पौधों की रोपाई अक्टूबर माह के अंत तक कर देनी चाहिए| जिसके बाद यह फ़रवरी माह के अंत तक फसल देना आरम्भ कर देते है| जब काहू के पौधे तुड़ाई के लिए तैयार होने वाले होते है, उस दौरान बारिश हो जाने पर फसल ख़राब होने का खतरा रहता है| इसलिए फसल तैयार होने के अंतिम समय में जल्द से जल्द कटाई करने का प्रयास करे| काहू की खेती

काहू के पौधों की सिंचाई:

काहू के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है| चूंकि इसके पौधों को ठन्डे मौसम में लगाया जाता है, इसलिए पहली सिंचाई बुवाई के 5 से 7 दिन बाद की जाती है| इसके पौधों के लिए 3 से 4 सिंचाई ही पर्याप्त होती है| काहू के फसल की बाद की सिंचाई पहली सिंचाई के 15 से 20 दिन के अंतराल में करना होता है| काहू की खेती

काहू के फायदे (Kahu Benefits):

काहू के बीजो की तुलना खुरफा के बीजो से कर सकते है| इसकी पत्तिया रक्त को शुद्ध करने में लाभकारी होता है, तथा पित्त को भी शांत करती है| इसके अलावा काहू कई तरह के रोग में लाभकारी है, जो इस प्रकार है :-

  • हस्तमैथुन के उपचार में:- वह युवक जो हस्तमैथुन कर अपने शरीर का नाश कर चुके है| वह जंगली काहू के 1 से 3 ग्राम बीजो के चूर्ण का सेवन कर अपनी कामवासना को नियंत्रित करके हस्थमैथुन से उत्पन्न दोष को दूर कर सकते है|
  • स्तन रोग के उपचार के लिए :- जिन महिलाओ के स्तन में दूध जम चुका होता है| वह इसके बीज के चूर्ण को सिरके के साथ मिलाकर उसका लैप स्तन पर लगाए| इससे जमे हुए दूध की समस्या दूर हो जाती है| इसके अलावा स्तन में दूध की मात्रा अधिक हो जाने पर काहू, जीरा व् मसूर के चूर्ण को सिरके के साथ मिलाकर उसके लेप को स्तन पर लगाए| इससे स्तन में दूध की मात्रा कम हो जाती है|
  • पेट में कीड़े हो जाने पर :- पेट में कीड़े की समस्या हो जाने पर काहू के बीज, राल, लोहबान, बायबिडंग, कलिहारी, कूठ, खस और भिलाव को मिलाकर उसके चूर्ण को तैयार कर ले| इसके बाद उस चूर्ण को आग में जलाकर उसका धुआँ लेने से पेट में मौजूद कीड़े मर जाते है|
  • वीर्य की कमी के लिए :– जिन पुरुषो का वीर्य पतला हो चुका है, वह काहू के 1 से 3 ग्राम बीजो की मात्रा का चूर्ण तैयार कर उसे मिश्री मिले दूध में डालकर खाए| इससे वीर्य तेजी से बढ़ता है, और शक्तिशाली भी होता है|
    पीएम किसान सम्मान निधि लिस्ट

काहू का रेट, पैदावार और लाभ:

काहू की फसल 110 से 120 दिन पश्चात तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है| इसके अलावा यदि आप बीजो की पैदावार प्राप्त करना चाहते है, तो फसल की तुड़ाई बीज आने पर ही करे| इसके पौधों की तुड़ाई कर उसे धूप में अच्छी तरह से सूखा लिया जाता है| सूखे हुए पौधों से बीजो को निकालकर एकत्रित कर ले| इन बीजो को कई वर्ष तक इस्तेमाल में लाया जा सकता है| एक एकड़ के खेत में तक़रीबन ढाई से तीन क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है, जिसका बाज़ारी भाव 60 से 70 हज़ार रुपए प्रति क्विंटल होता है| इस तरह से किसान भाई काहू की एक बार की फसल से अधिक कमाई कर लेते है| काहू की खेती

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