अखरोट की खेती (Walnut Farming)
(Walnut farming)अखरोट (Walnut) को ड्राई फ्रूट में गिना जाता है। अखरोट का इस्तेमाल मुख्य रूप से हेल्थी स्वाथ्य के लिए खाने में किया जाता है | किसानों के द्वारा इसकी खेती को सूखे मेवे के रूप में किया जाता है | अखरोट पौष्टिक तत्व से भरे होते है, जो मानव शरीर के लिए अमृत जैसा होता है| अखरोट का दो हिस्सा कवर रहता है, जिसमें ऊपरी हिस्सा काफी मजबूत होता है, किन्तु इसके अंदर पाई जाने वाली गिरी को खाने में इस्तेमाल किया जाता है|
विश्व भर में अखरोट की सर्वप्रथम खोज ईरान में की गई थी। अखरोट की लोकप्रियता को देखते हुए आज इसे विश्व के इटली, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी जैसे कई देशो में खाने के अलावा व्यापक रूप में भी उगाया जाने लगा है |
(Walnut farming)इसे खाने के अतिरिक्त कई तरह की चीजों अखरोट के फल से तेल, स्याही, रंजक, औषधि और बन्दूक के कुंदो को बनाने में किया जाता है| चीन को अखरोट का सबसे बड़ा उत्पादक देश माना जाता है, यही अमेरिका में अखरोट का सबसे ज्यादा निर्यातक देश है | भारत में अखरोट की खेती को पहाड़ी क्षेत्रों में जम्मू और कश्मीर, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश तथा अरुणाचल प्रदेश में भारी मात्रा में किया जाता है, जहाँ इसके पौधों की ऊंचाई 42 से 95 फ़ीट तक पाई जाती है |
अखरोट का सूखे मेवे में बहुत अधिक महत्त्व होता है, और यह काफी आसानी से बिक भी जाता है, जिससे किसान भाई अखरोट की खेती कर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकते है | आज इस लेख के माध्यम से अखरोट की खेती कैसे होती है।
अखरोट की खेती कैसे होती है (Walnut Farming)
अखरोट की खेती के लिए उचित जलवायु, तापमान और मिट्टी (Walnut Cultivation Suitable Climate, Temperature and Soil)
(Walnut farming)अखरोट की खेती को निचली भूमि के सतह वाली जगहों पर नहींकरनी चाहिए , क्योकि भूमि क्षारीय हो जाता है जो इसकी खेती के लिए हानिकारक होती है | अखरोट की खेती में भूमि का P.H. मान 6-7 के मध्य होना चाहिए | इसके अलावा संयमी जलवायु वाले प्रदेशो को अखरोट की खेती के लिए उत्तम माना जाता है |
अधिक गर्मी और सर्दी दोनों ही जलवायु अखरोट की खेती के सही नहीं होते है| अधिक सर्दियों में गिरने वाला पाला अखरोट की पैदावार को अधिक प्रभावित करता है,अधिक बारिश भी इसकी फसल के लिए बिष के सामान मन जाता है | इसलिए इसकी खेती को सामान्य जलवायु वाले क्षेत्रों में ही उपजाना चाहिए |
(Walnut farming)अखरोट के पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए 21 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है| यह गर्मियों के मौसम में अधिकतम 36 डिग्री तापमान तथा सर्दियों के मौसम में न्यूनतम 6 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकता है|
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(Walnut farming)अखरोट की उन्नत किस्मे (Walnut Improved Varieties)
(Walnut farming)पूसा किस्म के अखरोट:- इस किस्म के पौधों को समुद्र तल से 950-3000 मीटर की ऊंचाई पर आसानी से ऊगा सकते है | इस किस्म के पौधे 3.2 -4 वर्ष में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | यह पौधे ऊंचाई में सामान्य होते है, तथा इसमें निकलने वाला छिलका काफी पतला होता है | इस किस्म के अखरोट को खासकर बेहतर प्रोटीन के लिए खाने में इस्तेमाल किया जाता है |
ओमेगा 3 किस्म के अखरोट:- यह अखरोट की एक फॉरेन किस्म का पेड़ होती है, जिसके पौधे ज्यादा ऊँचे होते है | इस किस्म के फलो को औषधीय रूप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है | दिल की बीमारी के लिए यह बहुत उपयोगी माना जाता है | इसके फलो से तक़रीबन 61 प्रतिशत तेल प्राप्त किया जा सकता है |
कोटखाई सलेक्शन 1 किस्म के पौधे:- इस किस्म के पौधे काफी कम समय में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इस किस्म के अखरोट की गिरी हल्की हरी और खाने में अधिक स्वादिष्ट होती है | इसके पौधे की ऊंचाई ज्यादा नहीं सामान्य होती है, तथा फलो में निकलने वाला छिलका भी पतला होता है |
लेक इंग्लिश किस्म के अखरोट:- यह भी अखरोट की एक फॉरेन किस्म है, जिसमे पौधे लम्बे होते है | इस किस्म के पौधों जम्मू और कश्मीर जैसे प्रदेशो में ज्यादा उगाया जाता है | अखरोट की यह किस्म समय पर अच्छी पैदावार देती है |
इसके अतिरिक्त बाजार में अखरोट की कई प्रकार की किस्मे मौजूद है,जिन्हे अलग-अलग जलवायु में ज्यादा उत्पादन देने के लिए उगाया जाता है | अखरोट की कुछ अनोखे किस्मे :- कश्मीर अंकुरित, एस.आर. 11, K.N. 5, चकराता सिलेक्शन, S.H. 23, 24, K.12, प्लेसेंटिया, ड्रेनोवस्की, विल्सन फ्रैंकुयेफे और ओपक्स कॉलचरी मौजूद है |
(Walnut farming)अखरोट के खेत की तैयारी (Walnut Field Preparation)
(Walnut farming)अखरोट की खेती करने से पहले खेत को अच्छी तरह से रेडी कर लेना चाहिए | इसके लिए खेत में अच्छी तरह से मोटी जुताई कर दे, जिससे खर पतवार पूरी तरह से नष्ट हो जाये | इसके बाद खेत को 4-5 दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे, जिससे खेत में अच्छी तरह धूप लग जाये | उसके बाद रोटावेटर को लगवा कर खेत में चला दे | इससे खेत की मिट्टी हलकी हो जाएगी, फिर खेत में पाटा लगवा कर चला दे, जिससे खेत की भूमि समतल हो जाएगी | भूमि के समतल हो जाने से जल भराव नहीं होगा, पौधे अच्छे से विकाश करेंगे |
(Walnut farming)भूमि के समतल हो जाने के बाद 6 मीटर की दूरी को रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर लेना चाहिए, प्रत्येक पंक्ति में उचित दूरी पर दो फ़ीट चौड़े तथा डेढ़ फ़ीट गहरे गड्डो को तैयार कर लेना चाहिए |
अखरोट के पौधों की सिंचाई (Walnut Plants Irrigation)
(Walnut farming)अखरोट के पौधों को रोपाई के शुरुआत में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए यदि अखरोट के पौधों की रोपाई गर्मियों में हुई है तो इसके पौधों को हफ्ते में एक बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, वही सर्दियों के मौसम में इन्हे 21-30 दिन में पानी देते रहना चाहिए | इसके अलावा पौधे के पूर्ण रूप से तैयार हो जाने पर इन्हे आवश्यकतानुसार ही पानी दे |
फलो की तुड़ाई,पैदावार और लाभ (Walnut Harvesting, Yield and Benefits)
(Walnut farming)अखरोट के पौधों सामान्य तौर पर पैदावार देने के लिय 21-25 वर्ष का अधिक समय लेते है, किन्तु अखरोट की उन्नत किस्मे बीज रोपाई से 3.2-4 वर्ष में ही पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसके पौधों में जब फलो के ऊपरी छल फटने लगे तब तुड़ाई कर लेनी चाहिए, तथा जब इसके फल 21 प्रतिशत तक गिर जाये तब इसके फलो की तुड़ाई कर लेनी चाहिए | अखरोट की चमक के लिए इन्हे एक विशेष प्रकार के घोल में डूबाकर कुछ समय के लिए रखा जाता है |
(Walnut farming)अखरोट के फलों को धूप में अच्छे से सूखा लेना चाहिए | अखरोट का एक पौधा तक़रीबन 41 KG की पैदावार देता है,तथा अखरोट का बाजारी भाव किस्म के आधार पर 600 से 1000 रूपए प्रति किलो होता है | जिससे किसान भाई अखरोट की खेती कर एक बार में अच्छी मुनाफा कर सकते है |
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