कुसुम की खेती (Safflower Cultivation)
Safflower Cultivationकुसुम एक खरीफ फसल है, जिसे कुसुम्भ के नाम से भी पहचाने जाते है | यह सबसे पुरानी उत्पादक है, जिसके बीजो से ऑयल निकाला जाता है | इसके बीजो से 26-36% तेल की मात्रा मिल जाती है, जिसे मुख्य रूप से खाने के लिए इस्तेमाल में लाते है | कुसुम की खल का उपयोग पशुओ के चारे के लिए करते है | भारत को कुसुम की फसल का मुख्य उत्पादक देश कहा गया है |
देश में कुसुम की खेती(Safflower Cultivation) तक़रीबन 2096 लाख हेक्टेयर के क्षेत्रफल में की जाती है, जिसमे से कुल 1096 लाख टन की पैदावार मिल जाती है | कुसुम का दाम सरसो से ज्यादा होता है | तिलहनी फसलों को बढ़ावा देने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार लोगो को कुसुम की खेती की और प्रोत्साहित कर रही है |
(Safflower Cultivation)वर्ष 2017 में जहां कुसुम का MSP मूल्य सरसो के भाव से 50 रूपए प्रति क्विंटल कम था, वही सरकार ने इसे 2017 में कुसुम के भाव को सरसो के भाव के बराबर करने के साथ ही सरसो के मुकाबले अधिक MSP में कुसुम की फसल को तय किया | जिस वजह से किसान भाइयो के लिए कुसुम की खेती फायदे की खेती साबित हो रही है |
ऐसे में अगर आप भी कुसुम की खेती करने का मन बना रहे है, तो इस लेख में आपको कुसुम की खेती कैसे होती हैं तथा कुसुम का पौधा कैसा होता है और केसर और कुसुम में अंतर Safflower (Kusum) Farming in Hindi की जानकारी दी जा रही है |
(Safflower Cultivation)कुसुम की खेती में सरकार का प्रोत्साहन (Safflower Cultivation Government Encouragement)
(Safflower Cultivation)कुसुम की फसल के लिए MSP में लगातार वृद्धि इस तरह से हो रही है, कि वर्ष 2021-23 में कुसुम का भाव सरसो के दाम से तक़रीबन 400 रूपए अधिक है | जहां सरसो का MSP मूल्य 5055 रूपए प्रति क्विंटल है, तो वही कुसुम का MSP मूल्य 5442 रूपए प्रति क्विंटल तय किया गया है | सभी तिलहनी फसलों की तरह ही कुसुम की फसल का सही भाव लेने के लिए किसानो को MSP का सहारा लेने की जरूरत नहीं पड़ती है |
आमतौर पर किसानो को कृषि विक्रय मंडी में व्यापारियों द्वारा कुसुम का भाव MSP से अधिक मिल जाता है | क्योकि देश में पैदावार तिलहनी फसल से घरेलु जरूरत ही नहीं पूरी हो पा रही है | वर्तमान समय में हमारे देश में खाद्य तेलों की खपत सालाना तक़रीबन 252 लाख टन है, और उत्पादन सिर्फ 81 लाख टन का हो रहा है | जिस वजह खाद्य तेलों की पूर्ती करने के लिए भारी मात्रा में आयात किया जाता है |
(Safflower Cultivation)कुसुम की खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Safflower Cultivation Suitable Land)
(Safflower Cultivation)कुसुम की खेती के लिए बेहतर नम और अपेक्षाकृत भारी गठन वाली भूमि की जरूरत होती है | खेत की मिट्टी उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, जिसमे पानी का ठहराव न हो सके | खेत तैयार करने के लिए धान की कटाई के पश्चात् दो तीन जुताई कर पाटा चला दे | ऐसा करने से खेत की मिट्टी में नमी संरक्षित रहती है, तथा कुसुम के बीज अंकुरण के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए |
Also Read Elephant Foot Yam Farming, Lakhs in 1 hectare, Soil, Climate
(Safflower Cultivation)कुसुम की उन्नत किस्में (Safflower Improved Varieties)
K 65 :- यह कुसुम की एक उन्नत क़िस्म है, जिसे तैयार होने में 181 से 190 दिन का समय लग जाता है | इस प्रजाति में तेल की मात्रा 30-35% होती है, जिसकी औसतन उपज प्रति हेक्टेयर 12 से 15 क्विंटल होती है |
मालवीय कुसुम 305 :- यह कुसुम की एक उन्नत क़िस्म है, जो 165 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इस क़िस्म के बीजो से 38% तेल की मात्रा मिल जाती है |
A 300 :- यह भी कुसुम की एक उन्नत क़िस्म है, जो 162 से 170 दिन में पककर तैयार हो जाती है, तथा प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8 से 9 क्विंटल होता है | इसमें निकलने वाले पुष्प का रंग पीला होता है, तथा बीज सफ़ेद और मध्यम आकार के होते है, और बीजो से 31.9 प्रतिशत तेल की मात्रा मिल जाती है |
कुसुम A 1 :- कुसुम की यह क़िस्म भी A -300 के तरह ही 163 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी 8 से 10 क्विंटल होता है | इसके बीजो का रंग सफ़ेद होता है, जिसमे से 31.8 तेल की मात्रा मिल जाती है |
अक्षागिरी 59-2 :- यह भी एक उन्नत क़िस्म है, जो प्रति हेक्टेयर के खेत से 3से 5 क्विंटल की पैदावार दे देती है | इस क़िस्म की फसल भी 156 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इसमें निकलने वाले पुष्प पीले और बीज सफ़ेद रंग के होते है, जिसमे से 32% तेल की मात्रा मिल जाती है |
(Safflower Cultivation)कुसुम की खेती में बीज की मात्रा (Safflower Cultivation Seed Quantity)
(Safflower Cultivation)कुसुम की फसल में बीज रोपण करने के लिए प्रति हेक्टेयर के खेत में 16 से 20 KG उपचारित बीजो की आवश्यकता होती है | उपचारित करने के लिए बीजो को 4 GM थायरम की दर से उपचारित किया जाता है | इसके बाद बीजो को कतारों में लगाए, जिसमे कतार से कतार के मध्य 46 CM का अंतर रखे | फसल अंकुरण और खेती की तैयारी के साथ ही बुवाई में सतर्कता रखनी पड़ती है | कुसुम के दानो का छिलका चिकना और मोटा होता है |
जब कुसुम का बीज गीली मिट्टी में नहीं भीगता है, और मिट्टी से नहीं चिपकता है, तो अंकुरण ठीक तरह से नहीं होता है | इसके लिए संभव हो सके तो बुवाई से पहले बीजो को पूरी रात पानी में भिगोकर रखे, ताकि बीजो का अपेक्षाकृत अंकुरण हो सके | कुसुम के बीजो का अंकुरण ठीक तरह से हो सके इसके लिए बीजो को भूमि से 3 से 5 CM की गहराई में लगाए, तथा बीज अंकुरण के 21 दिन पश्चात् पौधे से पौधे के बीच का अंतर 22 से 25 CM रखे |
कुसुम के खेत में उवर्रक की उपयोगिता (Safflower Field Fertilizer Quantity)
(Safflower Cultivation)कुसुम की फसल में 21 KG फास्फोरस, 42 किलोग्राम नाइट्रोजन और 22 किलोग्राम पोटाश उवर्रक की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के खेत में बुवाई के समय देना होता है |
कुसुम की खेती में सिंचाई (Safflower Cultivation Irrigation)
कुसुम की खेती(Safflower Cultivation) में यदि आपके पास सिंचाई की उचित व्यवस्था है, तो आप पौधे की बढ़वार के दौरान एक से दो सिंचाई 56 से 60 दिन में कर सकते है | इसके अलावा जब पौधे की शाखाएँ पूर्ण विकसित हो जाए तब सिंचाई करे | इस तरह से आप कुसुम उत्पादन में 16 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी पा सकते है |
कुसुम की खेती में पौधों की निराई-गुड़ाई (Safflower Cultivation Plants Weeding)
कुसुम(Safflower Cultivation) का पौधा धीमी गति से वृद्धि करता है, इसलिए फसल में खरपतवार करने से फसल की प्रतिस्पर्धा ज्यादा होती है | 2 माह के अंदर कुसुम के पौधे की निराई-गुड़ाई अवश्य करे | खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए प्रत्येक वर्षा के पश्चात् भूमि की फावड़े या डच की सहायता से हल्की गुड़ाई करे, ताकि नमी का संरक्षण हो सके |
कुसुम की फसल में रोग नियंत्रण (Safflower Crop Disease Control)
कुसुम की फसल में सामान्य तौर पर अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट या रस्ट रोग का प्रकोप देखने को मिल जाता है | इस रोग से फसल को बचाने के लिए कुसुम के बीजो की बुवाई से पहले उन्हें उपचारित करे ले | इसके अलावा आप फसल चक्र को अपनाकर भी इस रोग पर नियंत्रण पा सकते है | रस्ट रोधी कुसुम की क़िस्म ए पी आर आर- 4 का इस्तेमाल करे |
फसल पर अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट या रस्ट के लक्षण दिखाई देने पर डायथेन एम- 45 की 0.5 GM की मात्रा को 1 लीटर पानी में मिलाकर उसका छिड़काव करे | इसके बाद जरूरत पड़ने पर 20 दिन में फिर से इस घोल का छिड़काव कुसुम की फसल पर करे |
(Safflower Cultivation)कुसुम की फसल में कीट नियंत्रण (Safflower Crop Pest Control)
कुसुम की फसल पर कीट का आक्रमण काफी कम दिखाई देता है, किन्तु कभी-कभी काली लाही का प्रकोप फसल पर आ जाता है | इस कीट से बचाव के लिए बीजो की बुवाई उचित टाइम पर करे | बिलम्ब बुवाई की वजह से यह लाही का प्रकोप फसल पर ज्यादा लगता है | कीट नियंत्रण के लिए कुसुम की फसल पर 255 ML नुवान की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के खेत में करे |
(Safflower Cultivation)कुसुम के फसल की कटाई (Safflower Harvest)
कुसुम के फसल की कटाई परिपक्वता आने के पश्चात् उनकी निचली पत्तियों को काटकर हटा दे | ताकि पौधे को पकड़ने में काँटेदार पत्तियाँ बांधा बने | इसके अलावा अगर आप काँटेवाली प्रजाति की कटाई करने जा रहे है, तो दस्ताने पहनकर भी परिपक्वता अवधि में आसानी से कटाई होती है | कुसुम की कांटी गई फसल को 2-3 दिन तक अच्छे से धूप में सूखा ले, और उनकी डंडे से पीटकर मड़ाई करे |
(Safflower Cultivation)कुसुम के बीजो का भंडारण (Safflower Seed Storage)
कुसुम की फसल से प्राप्त बीजो को समुचित ढंग से सुखाने के बाद उन्हें भंडारित कर सकते है | कुसुम के कई औषधीय फायदे भी है, इसके बीज, पत्ती, तेल, छिलका, पंखुडिया और शरबत सभी को औषधीय उपयोग में लाया जाता है | कुसुम के तेल से बनाए गए भोजन का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नियंत्रित रहती है, तथा सिर में तेल लगाने से सिरदर्द भी कम हो जाता है |
कुसुम के शरबत को बदन दर्द में भी उपयोग करते है, तथा कलाई में दर्द, मांसपेशियों की चोट, घुटने का दर्द और हड्डियों के दर्द में इसे ही इस्तेमाल करते है | कुसुम की पंखुड़ियों से बनाई गई चाय का इस्तेमाल शक्तिवर्धन और औषधीय रूप में करते है | मानसिक रोगों के उपचार में कुसुम के रस का इस्तेमाल करते है |
Read More कुसुम की खेती का विवरण