जूट की खेती (Jute Farming) कैसे होती है ?
जूट (Jute) की खेती भूमि में एक उच्च उपजाऊ और रेतीली पौध जूट के कपास के लिए की जाती है। यह एक मुख्य रेतीली फाइबर का प्रसारणकर्ता है और उच्च उत्पादन वाली फसलों में से एक मानी जाती है। जूट की खेती के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करें। बीजों की बुआई का समय ध्यान से चयन करें, जो आमतौर पर मार्च-अप्रैल के बीच होता है।
मिट्टी को अच्छे से तैयार करें, जिसमें अच्छा निर्गत हो, और पानी सुचारू रूप से निकल सके। मिट्टी में जल सुरक्षा की जरूरत होती है, ताकि पौधों को पूर्णत: पानी मिल सके। बीजों को बोनने के लिए बोन्ना या बोनाई मशीन का उपयोग करें।
बीजों के बोने जाने की दूरी और गहराई का ध्यान रखें।
पौधों को पोषित करने के लिए उर्वरकों का सही समर्थन करें।
पानी की सही मात्रा में पौधों को प्रदान करने के लिए सुनिश्चित करें, लेकिन जल संचार को ध्यान में रखें ताकि पानी जल में न जाए।
जूट पौधों को रोगों और कीटों से बचाने के लिए उपयुक्त कीटनाशकों का उपयोग करें। जूट की पूर्व-निर्धारित समय पर कटाई की जाती है। कटाई के बाद, फाइबर को सुखाने और संयंत्रित करने के लिए उचित प्रसंस्करण का ध्यान रखें।
इन चरणों का सख्ती से पालन करके, जूट की खेती से उच्च गुणवत्ता वाली फाइबर प्राप्त की जा सकती है, जो उद्योगों में उपयोग होती है।
जूट की खेती में उपयुक्त भूमि:
जूट की खेती के लिए उपयुक्त भूमि के लिए निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए:
जूट की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी लोमड़ी और रेतीली होती है। यह मिट्टी फाइबर की अच्छी गुणवत्ता को बनाए रखती है और पानी को अच्छी तरह से द्रवीभूत करती है। जूट पौधों को अच्छे से बढ़ाने के लिए भूमि में अच्छा जलस्रावण होना चाहिए। स्थानीय जलवायु के अनुसार जलस्रावण की सुविधा होना चाहिए।
जूट की खेती के लिए भूमि को सुनिश्चित रूप से निर्धारित करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए खेती के एक महीने पहले भूमि की तैयारी शुरू की जा सकती है। जूट की खेती के लिए सुरक्षित भूमि का चयन करना चाहिए, ताकि वहां उपयुक्त पोषण और पानी की आपूर्ति हो सके। भूमि के पुनर्निर्माण योजना का मजबूत होना चाहिए ताकि खेती के साथ-साथ भूमि की रक्षा भी सुनिश्चित हो सके। भूमि में अच्छा जल संचार होना चाहिए ताकि पौधों को सही मात्रा में पानी मिल सके और पानी जल में नहीं जाए।
जूट की खेती में ऊर्जा सहारा की आवश्यकता होती है, जिसमें बीज बोनने, जल सिंचाई, और उर्वरकों का उपयोग शामिल होता है। इन उपयुक्त भूमि विशेषताओं का सही तरीके से ध्यान रखकर, जूट की खेती में उच्च उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
जूट की उन्नत किस्में:
जूट की उन्नत किस्में (Improved Varieties) उन पौधों को कहा जाता है जो उच्च उत्पादन, बीमारी और कीट प्रतिरोध, और फाइबर की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए विकसित की जाती हैं। जूट की उन्नत किस्में किसानों को बेहतर फसल देने और उच्चतम लाभ प्रदान करने के लिए तैयार की जाती हैं। यहां कुछ उन्नत जूट किस्में हैं:
जीवन ज्योति (JRO-204):
यह भारतीय खेती के लिए एक लोकल जूट की उन्नत किस्म है।
इसमें फाइबर की अच्छी गुणवत्ता है और उच्चतम उत्पादन प्रदान करती है।
सुनेता (JRO-632):
यह एक अन्य भारतीय उन्नत किस्म है जिसमें उच्चतम फाइबर की गुणवत्ता होती है।
इसमें फाइबर का संदर्भ बड़ा होता है और रोग प्रतिरोधी है।
सोमनाथ (JRO-878):
यह भी भारतीय बाजार के लिए एक उच्चतम फाइबर की उन्नत किस्म है।
इसमें फाइबर की अच्छी गुणवत्ता होती है और यह कई भूमि स्थितियों में उच्चतम उत्पादन कर सकती है।
सीनेटिका (JRO-524):
यह एक विशेषकर बंगलादेश में प्रचलित उन्नत किस्म है जिसमें उच्च फाइबर की गुणवत्ता है। इसकी विशेषता यह है कि यह अच्छी से अच्छी फाइबर प्रदान करती है और रोग प्रतिरोधी है।
साइक्लोन (JRO-843):
यह भी एक उच्चतम फाइबर की उन्नत किस्म है जो बांग्लादेश में प्रसारित है।
इसमें फाइबर की अच्छी गुणवत्ता है और यह सुदृढ़ पौधों के साथ उच्चतम उत्पादन करती है। उन्नत जूट किस्में स्थानीय उपजाऊ क्षेत्रों के अनुसार विभिन्न भूमियों और जलवायु क्षेत्रों के लिए विकसित की जाती हैं।
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जूट के बीजो की रोपाई का समय और तरीका:
जूट के बीजो की रोपाई बीज के रूप में गेहू और बाजरे की तरह छिड़काव और ड्रिल विधि द्वारा किया जाता है | छिड़काव विधि में बीजो को जुते हुए समतल खेत में छिड़ककर हल्की जुताई क़र मिट्टी में बीजो को मिला दिया जाता है | इसके अलावा ड्रिल के माध्यम से रोपाई के लिए बीजो को पंक्तियों में लगाते है | इस दौरान पंक्ति से पंक्ति के मध्य 5 से 7 CM की दूरी पर बीजो को लगाते है | इस दौरान एक हेक्टेयर के खेत में 4 से 5 KG बीज लगते है, तथा छिड़काव विधि में 6 से 7 KG बीज लगते है |
जूट के बीजो की रोपाई क़िस्म और वातावरण के अनुसार फ़रवरी से जून और जुलाई के मध्य महीने तक की जा सकती है | उचित समय पर बीजो की बुवाई क़र अच्छी पैदावार ले सकते है | जूट के बीजो को खेत में बुवाई करने से पहले बीज शोधन अवश्य क़र ले, ताकि फसल में रोग न लगे | इसके लिए उन्हें थीरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित क़र ले |
उर्वरक की मात्रा (Fertilizer Amount):
जूट की फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए खेत में उचित उवर्रक देना होता है | इसके लिए खेत की पहली जुताई के समय 25 से 30 टन सड़ी गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला देते है | किसान भाई जैविक खाद के साथ-साथ रासायनिक खाद का भी इस्तेमाल क़र सकते है | इसके लिए उन्हें बस अंतिम जुताई के समय 2:1:1 के अनुपात में नाइट्रोजन (Nitrogen), फास्फोरस (Phosphorus) और पोटाश (Potash) की 90 KG की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के खेत में दे | इसके अलावा पौध सिंचाई के साथ नाइट्रोजन की आधी मात्रा को दो बार में दे |
जूट के पौधों से रेशे निकालना:
जूट की खेती-जूट के पौधों से रेशे निकालने के लिए बंडलों को 20 से 25 दिन तक पानी में डुबोकर रखना होता है | इसके बाद इन्हे बाहर निकालते है, और सड़ चुके पौधों से रेशा निकाला जाता है, जिसे साफ पानी से धोकर साफ क़र लेते है | इन साफ रेशो को सुखाने के लिए खुली धूप में किसी लकड़ी पर तीन से चार दिन के लिए रख देते है | इस दौरान धूप में रखे रेशो को पलटते रहना चाहिए | ताकि रेशो में नमी की मात्रा बिल्कुल कम बचे | क्योकि ज्यादा नमी रेशो को ख़राब क़र देती है |
जूट की खेती-इसके बाद इन सूखे हुए रेशो को बंडल बनाकर संग्रहित क़र लेते है | क्योकि अधिक समय तक बिखरा हुआ रेशा कमजोर हो जाता है, तथा गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है | जिस वजह से बाजार में भाव भी अच्छे नहीं मिल पाते है |
जूट की पैदावार और लाभ:
जूट की खेती-जूट के पौधों को तैयार होने में 120 से 150 दिन लग जाते है | इस दौरान पौधों की उचित देख-रेख क़र प्रति हेक्टेयर के खेत से 30 से 35 मन की पैदावार ली जा सकती है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से तक़रीबन 60 से 80 हज़ार रूपए की कमाई क़र सकते है |