जिमीकंद की खेती | (Elephant Foot Yam Farming)
(Elephant Foot Yam Farming)जिमीकंद को एक औषधीय फसल के रूप में पहचाना जाता है, किन्तु इसका प्रयोग हमारे घरो में सब्जियों के रूप में भी होता है | कई क्षेत्रों में इसे ओल और सूरन के नाम से भी जाना जाता है | जिमीकंद की तासीर(फल) ज्यादा गर्म होती है, जिस वजह से इसका सेवन करने से खुजली की समस्या सुनने को मिलती है, किन्तु 2020 के बाद से, जिमीकंद की कुछ ऐसी उन्नत किस्मे आ गई है, जिन्हे खाने से किसी तरह की खुजली नहीं होती है | इसके फल कंद के रूप में भूमि के अंदर ही विकसिते होते है ।
(Elephant Foot Yam Farming)जिमीकंद के फलो में कैल्शियम, खनिज, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट जैसे कई प्रमुख खनिज पाए जाते है, जिस वजह से इसे खाने के अलावा आयुर्वेदिक दवाओं में भी प्रयोग किया जाता है | जिमीकंद को बवासीर, दमा, उबकाई, फेफड़ो की सूजन, पेचिस और पेट दर्द जैसी कई बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए उपयोग में लाया जाता है | (Elephant Foot Yam Farming)आज के समय में जिमीकंद को व्यापारिक रूप में ज्यादा उगाया जा रहा है | यदि आप भी जिमीकंद की खेती कर ज्यादा लाभ कमाना चाहते है, तो आज हम आपको जिमीकंद की खेती कैसे होती है, इसके करने से कितना लाभ कमा सकते है, अदि सब की जानकारी प्रदान करने जा रहे है इस लेख के माध्यम से ।
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जिमीकंद की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी, जलवायु और तापमान (Yam Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
(Elephant Foot Yam Farming)जिमीकंद की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सही माना जाता है, इस तरह की मिट्टी में इसके पौधे अच्छे से विकसित होते है, किन्तु जल-भराव वाली भूमि में इसकी खेती को करने की गलती मत करें, क्योकि जलभराव की स्थिति में इसके पौधे अच्छे से विकास नहीं कर पाते है | इसकी खेती में 7-8 P.H. मान वाली भूमि की जरुरत होती है| जिमीकंद के पौधे उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से विकसित होते है, इसके फसल को बारिश के मौसम में नहीं किया जा सकता है |
(Elephant Foot Yam Farming)इसके पौधे गर्मी और सर्दी के मौसम में अच्छे से विकास करते है, तथा इसके पौधों के बीज के अच्छे अंकुरण के लिए 21 डिग्री तापमान की जरुरत होती है | इसके बाद पौधा जैसे-जैसे विकास करता है, वैसे-वैसे इसे सामान्य तापमान की जरुरत होती है | यह अधिकतम 36 डिग्री के तापमान को बर्दास्त कर सकता है |
जिमीकंद की उन्नत किस्मे (Improved Varieties of Jimmikand)
गजेन्द्र किस्म के पौधे:- (Elephant Foot Yam Farming)इस किस्म को कृषि विज्ञान केंद्र संबलपुर द्वारा रेडी किया गया है | इसके पौधों में कम गर्मी वाले फल लगते है, जिन्हे खाने से बॉडी में खुजली नहीं होती है | पौधों की इस किस्म को बारिश के मौसम में नहीं उपजाया जाता है| इसमें एक पौधे में केवल एक ही तासीर निकलता है, तथा फल के अंदर हल्का नारंगी रंग का गूदा होता है| यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 81 टन की पैदावार देता है|
एम – 15 किस्म का पौधा:- (Elephant Foot Yam Farming)पौधे की इस किस्म को श्री पद्मा के नाम से भी पहचाना जाता है| इसके फलो की तासीर कम गर्मी वाली होती है, जिससे इसे खाने से खुजली जैसी समस्या नहीं होती है | इसमें भी एक पौधे में एक ही फल प्राप्त होता है| एक हेक्टेयर के खेत में यह 71 से 83 टन की पैदावार देता है | यह दक्षिण भारत में जायदा उगाई जाने वाली फसल है|
संतरागाछी किस्मे के पौधे:- इस किस्म के एक पौधे में कई फल पाए जाते है | इन फलो की तासीर हलकी गर्म होती है, जिससे इन्हे खाने पर हलकी खुजली जैसी समस्या देखने को मिल सकती है | (Elephant Foot Yam Farming)इसकी फसल 6 से 7 महीने में पैदावार देना आरम्भ कर देती है | यह प्रति हेक्टेयर में 52 टन की सामान्य पैदावार देने वाली किस्म है |
संतरा गाची किस्म के पौधे:- इस किस्म के पौधों को भारत के पूर्वी राज्यों में ज्यादा उगाया जाता है | इसके एक पौधे में कई मोटे कंद प्राप्त हो जाते है | इस किस्म के सूरन का स्वाद खाने में हल्का तीखा मालूम होता है, जिस वजह से इसे खाने में गले में थोड़ी तीक्ष्णता हो सकती है | इस किस्म के पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 51 से 76 टन की पैदावार देते है |
सूरन की खेती की तैयारी और उवर्रक की मात्रा (Yam Field Preparation and Fertilizer)
यदि आप जिमीकंद की ज्यादा पैदावार प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए आपको जिमीकंद के बीजो को खेत में लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से रेडी कर लेना चाहिए |(Elephant Foot Yam Farming) इसके लिए खेत की अच्छे से गहरी जुताई कर 10 दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे, इससे खेत के कीड़े मकोड़े मर जाते है | इसके बाद खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद को डाल कर फिर से अच्छे से जुताई कर गोबर को मिट्टी में मिला दें |
(Elephant Foot Yam Farming)इसके बाद खेत में अंतिम जुताई के समय पोटाश 51 KG, 43 KG यूरिया और 152 KG डी.ए.पी. की मात्रा अच्छे से मिलाकर खेत में छिड़ककर फिर से तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए, जिससे खाद अच्छी तरह से मिट्टी में मिला दिया जाये | इसके बाद खेत में पानी लगा कर पलेव कर दें | 5 दिनों के पश्चात जब खेत की मिट्टी सूखी दिखाई देनी लगे तब कल्टीवेटर लगा कर जुताई करवा दे | इसके बाद बीज रोपाई के लिए नालियों को बना कर रेडी कर लेना चाहिए।
जिमीकंद के बीजो की रोपाई और सिंचाई (Yam Seeds Sowing and Irrigation)
(Elephant Foot Yam Farming)जिमीकंद के बीजो को खेत में लगाने से पूर्व उन्हें अच्छे से उपचारित कर लेना चाहिए | बीजो के उपचारण के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या इमीसान की उचित मात्रा का घोल बना कर उसमे आधे घंटे के लिए इन बीजो को डूबा देना चाहिए | चूंकि सूरन के बीज इसके फलो से ही तैयार होते है | (Elephant Foot Yam Farming)इसलिए इसके पूरी तरह से पके हुए फलो को कई भागो में काटा जाता है, उसके बाद बीजो को उपचारित कर खेत में लगाया जाता है | इसके एक बीज का वजन तक़रीबन 251 से 502 GM के मध्य होता है, जिस वजह से प्रति हेक्टेयर के खेत में 65 हेक्टेयर का बीज लगता है ।
(Elephant Foot Yam Farming)जिमीकंद के बीजो को रेडी की गई नालियों में लगा देना चाहिए | इसके अतिरिक्त कुछ किसान भाई इसके बीजो की रोपाई गड्डो को रेडी कर उसमे लगाते है | सूरन की फसल को ज्यादा सिंचाई की जरुरत होती है, इसलिए बीजो की रोपाई के बाद तुरंत सिंचाई कर देनी चाहिए, तथा बीजो के अनुकरण तक खेत में नमी को बरक़रार रखने के लिए सप्ताह में तीन बार सिंचाई करनी चाहिए | सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 16-21 दिन सिंचाई की जरुरत होती है, वही बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही इसके पौधों की सिंचाई करनी चाहिए |
जिमीकंद के खेतो में खरपतवार नियंत्रण (Jimikand Fields Weed Control)
(Elephant Foot Yam Farming)जिमीकंद के खेत में सामान्य खरपतवार नियंत्रण की जरुरत होती है | इसके लिए बीजो की रोपाई से तक़रीबन 16 दिन बाद प्राकृतिक तरीके से निराई-गुड़ाई कर खरपतवार पर नियंत्रण करना चाहिए | (Elephant Foot Yam Farming)जिमीकंद के पौधों को लगभग 4-5 नीलाई गुड़ाई की आवश्यकता होती है | जिन्हे समय-समय पर खरपतवार दिखाई देने पर गुड़ाई कर देना चाहिए |
जिमीकंद के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Yam Plants Diseases and their Prevention)
जिमीकंद भृंग किस्म के रोग:-
(Elephant Foot Yam Farming)इस किस्म का रोग पौधों की पत्तियों और शाखाओ में पाया जाता है | यह एक तरह का कीट रोग मन गया है | जिसमे हल्के भूरे रंग की सुंडी पायी जाती है | यह सुंडी ही पौधों की पत्तियों और शाखाओ को खा कर ख़त्म कर देती है | जिससे पौधा ख़राब होकर भूमिगत हो जाता है, जिससे पैदावार ज्यादा प्रभावित होती है |(Elephant Foot Yam Farming) पौधों को इस रोग से बचाने के लिए नीम के काढ़े को माइक्रो झाइम के साथ मिश्रित कर छिड़काव करें |
झुलसा रोग:- इस किस्म के रोग जीवाणु जनित पाया जाता है | यह अगस्त के माह में पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करता है, जिससे पौधे की पत्तिया हल्के भूरे रंग की हो जाती है | इस रोग के अधिक प्रभावित होने पर पत्तिया भूरे रंग की होकर गिरने लगती है, जिससे पौधा वृद्धि करना क्लोज कर देता है | इंडोफिल या बाविस्टीन की ज्यादा मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
तना गलन रोग:- इस तरह का रोग अक्सर जल-भराव की स्थिति में देखने को मिलता है | इस तरह के रोग से बचाव के लिए खेत में जल-भराव की स्थिति न पैदा होने दे | यह जड़ गलन रोग पौधे के तने को जमीन के पास से गला कर नष्ट कर देता है | कैप्टान दवा का उचित में मात्रा में पौधों की जड़ो में छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
तम्बाकू की सुंडी रोग:- यह एक कीट जनित रोग होता है, तम्बाकू सुंडी का लार्वा सुंडी के रूप में आक्रमण करता है | इसका लार्वा हल्के भूरे रंग का होता है,जो पौधों की पत्तिया खाकर उसे ख़त्म कर देता है | (Elephant Foot Yam Farming)यह रोग जून और जुलाई के माह में ज्यादा आक्रमण करता है | पौधों पर लगने वाले इस रोग से बचाव करने के लिए मेन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की सही मात्रा का छिड़काव किया जाता है |
जिमीकंद के कंदों की खुदाई, पैदवार और लाभ (Yam Tubers Digging, Yield and Benefits)
(Elephant Foot Yam Farming)जिमीकंद के पौधे 7-8 महीने में पैदावार देने के लिए रेडी हो जाती है | जब इसके पौधों की पत्तिया सूखकर गिरने लगे तब इसके फलो को खुदाई कर निकल लेते है | इसके बाद उन्हें साफ पानी से धो देना जरुरी होता है | धोये हुए फलो को छायादार जगह में अच्छे से सूखा लेना चाहिए । इसके बाद इन्हे बाजारों में लेकर जाकर बेच देना चाहिए ।
(Elephant Foot Yam Farming)जिमीकंद के एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 80-90 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है | जिमीकंद का बाजारी भाव 2005 रूपए प्रति क्विंटल के आसपास होता है । जिस हिसाब से किसान भाई इसकी एक बार की फसल से लगभग 5 लाख तक की कमाई कर सकते है |
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