सहजन की खेती:
सहजन, जिसे मोरिंगा या ड्रमस्टिक मरींगा भी कहा जाता है, एक पुनर्नवीत पौधा है जिसकी खेती को लोगों ने अच्छी माना है क्योंकि इसमें विभिन्न पोषणतत्व और औषधीय गुण होते हैं। सहजन की खेती करने के लिए निम्नलिखित तरीके हो सकते हैं।
सहजन की खेती की शुरुआत अच्छे बीजों का चयन के साथ होती है। बाजार से या स्थानीय नर्सरी से अच्छे गुणवत्ता वाले बीजों की प्राप्ति करें। इसके बाद, उन्हें खेत में बोना जा सकता है। सहजन के लिए अच्छी खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चयन करें। यह वानिकी या लोमी भूमि में अच्छी तरह से उगता है और अच्छी ड्रेनेज प्रणाली होनी चाहिए।
सहजन को पूर्व-बोना जमीन में उगाना चाहिए जिसमें उपयुक्त उर्वरक, गोबर, या नटरल कम्पोस्ट मिला हो। सहजन की पौधों के लिए नियमित सिंचाई का सुनिश्चित होना आवश्यक है। यह नैत्रेजन संदर्भित करने के लिए उपयुक्त है और पौधों को सही तापमान में रखने में मदद करता है।
सहजन के पौधों की सही रोपाई और प्रुनिंग उन्हें स्वस्थ बनाए रखने में मदद कर सकती है। यह उच्च और सही फल और पत्तियों के विकास को प्रोत्साहित कर सकता है। सहजन को उपयुक्त मात्रा में उर्वरक और पोषण प्रदान करना आवश्यक है। पौधों के विकास के लिए नियमित रूप से उर्वरक प्रदान करें।
सहजन की खेती में नियमित रूप से रोग और कीटों का प्रबंधन करना महत्वपूर्ण है। यह बीमारियों से बचाव और पौधों को सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है। सहजन की खेती से लाभ कास्तामल से आता है क्योंकि इसमें पोषण और औषधीय गुण होते हैं और इसके पत्तियां, फूल और बीज विभिन्न उपयोगों के लिए उपयुक्त हैं।
सहजन की खेती का खेत कैसे तैयार करे (Prepare Cultivator Of Drumstick Cultivation):
सहजन की खेती में पौधों को लगाने के लिए गड्ढो को तैयार कर लेना चाहिए | इसके लिए खेत को अच्छी तरह से जुताई कर खरपतवार को साफ कर देना चाहिए, तथा 2.5 x 2.5 मीटर की दूरी पर 45 x 45 x 45 सेंमी. तक गहरे गड्डो को तैयार कर ले | गड्डो को भरने के लिए मिट्टी के साथ 10 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद को मिलाकर भरना चाहिए | इससे खेत पौधों की रोपाई के लिए अच्छे से तैयार हो जाता है |
सहजन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:
सहजन का पौधा गर्म और सूखे में अच्छे से उगता है, लेकिन यह बर्फ और ठंडे जलवायु को भी सह सकता है। इसकी खेती के लिए निम्नलिखित उपयुक्त जलवायु होनी चाहिए।
सहजन का पौधा उच्च तापमान में अच्छे से विकसित होता है। यह 35-40 डिग्री सेल्सियस तापमान को अच्छी तरह से सहन कर सकता है। सहजन का पौधा अच्छे से खुले स्थान में उगने के लिए उपयुक्त है, ताकि वह सुर्य प्रकाश को अच्छी तरह से प्राप्त कर सके।
अच्छी ड्रेनेज वाली भूमि सहजन के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह पौधों को पानी की भारी मात्रा में पीने से बचाता है। सहजन की खेती के लिए सालाना 700-1500 मिमी की वर्षा की आवश्यकता होती है, लेकिन यह सूखे में भी अच्छे से उग सकता है।
सहजन की खेती के लिए अच्छी ड्रेन होने वाली मिट्टी आवश्यक है। यह लोमी और नेचुरल कम्पोस्ट से भरपूर होनी चाहिए। सहजन का पौधा अच्छी तरह से खुले स्थान में उगने के लिए सुखाने वाली मिट्टी में भी अच्छे से उग सकता है।
सहजन को फ्रॉस्ट कम स्थानों में उगाया जाता है क्योंकि यह ठंडे सर्दी में बर्फ नहीं सह सकता है। सहजन की खेती के लिए इन जलवायु और भूमि शर्तों का सही संयोजन, उचित प्रबंधन और देखभाल से उच्च उत्पादकता हासिल की जा सकती है।
सहजन की उन्नत किस्मे:
सहजन की कई उन्नत किस्में (varieties) हैं जो उच्च उत्पादकता और औषधीय गुणों के लिए विकसित की गई हैं। निम्नलिखित कुछ प्रमुख सहजन की उन्नत किस्में हैं:
PKM1 : यह किस्म भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्रों में प्रमुख रूप से उगाई जाती है और उच्च उत्पादकता के लिए जानी जाती है। इसकी पत्तियां, फूल और बीज सभी उपयोगी होते हैं।
PKM2 : यह भी एक और उन्नत किस्म है जो उच्च उत्पादकता, तेजी से उगने की क्षमता, और अच्छी गुणवत्ता के लिए जानी जाती है।
CO(M)3: यह किस्म भारत में उगाई जाने वाली अन्य एक उन्नत किस्म है जो उच्च प्रमाण में औषधीय और पोषण सामग्री प्रदान करती है।
ODC3: यह किस्म खुदाई के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है और इसमें बड़े और गहरे जड़े होते हैं जो पौधों को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।
Nattu Saigan : यह तमिलनाडु राज्य में प्रमुख रूप से उगाई जाने वाली किस्म है जो स्थानीय स्तर पर पूरे वर्ष में उग सकती है और उच्च प्रमाण में पोषण प्रदान करती है।
ये उन्नत सहजन किस्में भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में उगाई जाती हैं और आधुनिक खेती प्रवाह को ध्यान में रखते हुए उच्च उत्पादकता और औषधीय गुणों की प्राप्ति के लिए विकसित की जाती हैं।
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सहजन के बीज की रोपाई (Drumstick Cultivation Seed Planting):
सहजन की फसल में बीजो की रोपाई के लिए शाखा के दोनों टुकड़ो का प्रबर्द्धन करना चाहिए | वर्ष में दो बार फसल को प्राप्त करने के लिए बीज से प्रबर्द्धन करना उपयुक्त माना जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 500 ग्राम बीजो की रोपाई करनी चाहिए | बीजो को गड्डो में लगाने से एक महीने पहले उन्हें पॉलीथीन बैग में तैयार कर लेना चाहिए | इसके बाद उन्हें तैयार किये गए गड्डो में लगा देना चाहिए |
सहजन का शस्य प्रबंधन (Drumstick Crop Management):
बीजो की रोपाई से एक महीने पहले गड्डो को तैयार कर लेना चाहिए, इसके बाद एक महीने पहले तैयार पौधों को गड्डो में जुलाई-सितम्बर के मध्य रोपाई कर देनी चाहिए | जब पौधा 75 सेंमी. का हो जाये तब पौधे के ऊपरी भाग को खोटनी कर दे ताकि बगल में निकलने वाली शाखाओ को आसानी हो जाये | बीज रोपाई के तीन महीने बाद 100 gm यूरिया + 100 gm सुपर फास्फेट + 50 gm पोटाश की मात्रा से मात्रा से गड्डो को उपचारित करना चाहिए, तथा उसके तीन माह गुजर जाने के बाद गड्डो को 100 gm यूरिया की मात्रा से पुनः उपचारित करना चाहिए | किये गए शोध के अनुसार 15 किलोग्राम गोबर की खाद, एजोसपिरिलम और पी.एस.बी. (5 KG/हेक्टेयर) की मात्रा से प्रति गड्डे को दें, इससे पैदावार प्रभावित नहीं होगी |
सहजनी के पौधों की सिंचाई (Drumstick Plants Irrigation):
सहजनी की अच्छी फसल प्राप्त के लिए सिंचाई करना लाभदायक होता है | बीजो के अंकुरण और अच्छी तरह से स्थापन के लिए गड्डो में नमी का बना रहना बहुत आवश्यक होता है | जब पौधों में फूल लगने लगे उस समय न पौधों को सिंचाई की आवश्यकता होती है, और न ही ज्यादा सूखेपन दोनों ही अवस्थाओं में पौधों से फूलो के झड़ने का खतरा बना रहता है |
सहजन में कीट रोग नियंत्रण (Drumstick Pest Disease Control):
सहजनी के पौधों को सबसे ज्यादा खतरा बिहार में भुआ पिल्लू नामक कीट से होता है | यह कीट पौधों के लिए अधिक हानिकारक होता है | यदि इस कीट से पौधों को नहीं बचाया जाये तो यह पौधों की पत्तियों को खाकर पौधों को पूरी तरह से नष्ट कर देता है | जिससे पैदावार अधिक प्रभावित होती है | यह कीट पौधों पर अंडे से निकलने के पश्चात नवजात अवस्था में एक ही स्थान पर रहता है, किन्तु बाद में भोजन की तलाश में यह पौधों पर बिखरने लगते है, और पौधों की पत्तियो को खाकर उन्हें हानि पहुंचाने लगते है | डाइक्लोरोवास (नूभान) दवा की 0.5 मिली. की मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव कर इस कीट रोग से बचाव किया जा सकता है |
सहजन के फलो की तुड़ाई और पैदावार (Drumstick Harvesting and Yield)
सहजन के उन्नत किस्म के पौधे वर्ष में दो फल देते है, जिनकी तुड़ाई फ़रवरी-मार्च और सिंतम्बर-ऑक्टूबर के माह में की जाती है | सहजन का प्रत्येक पौधा एक वर्ष में तक़रीबन 40-50KG की पैदावार देता है | बाजारी परिस्थितियों के आधार पर इसके पौधों की तुड़ाई 1-2 माह तक चलती है | सहजन का बाजारी मूल्य भी अच्छा होता है, जिससे किसान भाई इसकी फसल कर अच्छा लाभ भी कमा सकते है |
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